Book Title: Updesh Prasad Part_1
Author(s): Vijaylaxmisuriji
Publisher: Surendrasurishwarji Jain Tattvagyanshala Ahmedabad
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ॐ अर्ह नमः
किञ्चित प्रास्ताविकम् भस्य महाग्रन्थस्य का उपयोगिताऽस्ति ? तवहं दर्शयामि । अयं श्री उपदेश प्रासावनामा महाप्रन्थः सर्वजनोपयोगी वर्तते ।
कारणं तु अस्मिन् प्रन्थे धृतज्ञानपिपासूनां बालमध्यमविद्वज्जनानां तृप्तिकारक दानशीलतपोभावपोषकविषया ग्रन्थकार
महर्षि श्रीविजयलक्ष्मीसूरीश्वरमहाराजेन विविधशास्त्रेभ्य उधत्य संगहीताः। तथा च विद्वज्जनोपकारकजनदर्शनमान्यतात्त्विकपदार्थप्ररुपणाऽपि सुन्दरतरा दृश्यते । ऐतिहासिकसंशोधकानां तु बहवो
लाभदायिनो पदार्थाः सभ्यन्ते । एकंककथासु धर्माधर्म प्रवर्य भवौदधौ पतन्त आत्मानसन्मार्गे कयं पापणीया इत्यादि रोतिरपि दशिता। अरे गीतार्थमहात्मनामहोपकारिभूतापापालोचनाविषये कथं प्रायश्चित्तं देयं इत्यादि गुप्तपदार्थाः अपि सम्यग् नीत्या
प्रदर्शिताः। अर्थात् सर्वविषयसंग्राहकोऽयं महामन्यस्तस्मादादेयतया सर्वैरपि पठिस्यते इतिमन्यः । अलं विस्तरेण । दिनांक ७-१२-१९८७
विजय रामसूरि वि. सं. २०४४ मार्गशीर्ष कृष्ण द्वितीया स्थल-नारणपुरा जहवेरी पार्क अमदाबाद
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