Book Title: Tulsi Prajna 2008 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ अहिंसा ओर मैत्री के बिना शांति संभव नहीं नए वर्ष का स्वागत होता है। सब लोग अपने-अपने इष्ट स्थानों में जाते हैं, मंगल आशीर्वाद मांगते हैं और सफलता की कामना करते हैं। दूसरे दिन सारी बात भूल जाते हैं। हर पुराना वर्ष नए वर्ष को अपनी विरासत सौंप कर जाता है। उसमें कुछ अच्छाइयां होती हैं और कुछ खामियां। पूरे विश्व में पर्यावरण की समस्या के प्रति जागरूकता बढ़ी है, यह एक अच्छी बात है किन्तु उसके साथ जुड़ी हुई खामी को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते कि पर्यावरण के प्रदूषण की समस्या को सुलझाने के लिए जितना प्रयत्न होना चाहिए, नहीं हो रहा है। बढ़ती हुई हिंसा और आतंक की समस्या के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। चिन्ता-चिन्तन भी चल रहे हैं। यह शुभ लक्षण हैं। अपेक्षा है कि समस्या को सुलझाने की गति तीव्र हो। नए वर्ष के अवसर पर मैं आपको एक सूचना दे रहा हूँ कि हम अहिंसा यात्रा के कार्यक्रम को अहिंसा समवाय के रूप में परिवर्तित कर रहे हैं। अहिंसा समवाय के सात-सूत्री कार्यक्रम की योजना तैयार की गई है :1.अहिंसा के द्वारा सन्तुलित व्यक्तित्व का विकास 2.अहिंसा के द्वारा पारिवारिक समस्या का समाधान 3.अहिंसा के द्वारा जातीय और साम्प्रदायिक समस्या का समाधान 4.अहिंसा के अर्थशास्त्र की अवधारणा को व्यापक बनाने का प्रयत्न 5.अन्तर्राष्ट्रीय जगत में सार्वभौम अहिंसा का प्रसार 6.अहिंसा प्रशिक्षण 7.अहिंसा प्रधान जीवन शैली का विकास मेरी विचार धारा है कि हमारी दुनिया का बड़ा भाग शान्ति से जीना चाहता है और वह जानता है कि शान्ति के बिना विकास नहीं हो सकता । इस सच्चाई को हम भी नहीं भूल सकते कि अहिंसा और मैत्री के बिना शान्ति संभव नहीं है। हम सब अनुभव कर सकते हैं और करते ही होंगे कि वर्तमान मानव समाज में आकांक्षा और महत्वाकांक्षा बहुत बढ़ी है, व्यक्तिवाद बहुत बढ़ा है। मनुष्यों की हत्या करना तिनकों को तोड़ने जैसा लग रहा है। करुणा और संवेदनशीलता में कल्पना से अधिक कमी हो रही है। नए वर्ष के सूर्योदय की प्रकाशमय पवित्र बेला में हम सब सकल्प करें कि हम आज के समस्यासंकुल वातावरण को बदलने के लिए - 1.परमार्थ की चेतना का विकास करेंगे। 2.सामुदायिक चेतना का विकास करेंगे। 3.करुणा और संवेदनशीलता की चेतना का विकास करेंगे। नया वर्ष : स्वागतम् अनुशास्ता आचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 98