Book Title: Tulsi Prajna 1993 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 143
________________ मूल्य शिक्षा की एक शैक्षिक आधार दृष्टि 137 धार्मिक, व्यावहारिक नियमों के और ऐसे अन्य बंधन डाल कर उसे और भी बांध देते हैं और फिर उसे 'सच्चा इंसान' बनाने के लिए शिक्षा का प्रबंध करके मुस्कराते हैं। ऐसा करके हम उसे स्वत्व से, स्वदेश से, स्वानुभव से बहुत दूर ले गए हैं ।''23 ____ बंद समाज के मूल्य दूसरे होंगे और खुले समाज के मूल्य दूसरे होंगे । बंद समाज हमें बर्बर युग में पुन: ले जाएगा और खुला समाज हमें किसी एक मूल्य की कोठरी में कैद नहीं करेगा । आग्रह बुरा है । अतिरेक गलत है । दबाव से, जोर जबरदस्ती से, मूल्यों की शिक्षा नहीं होगी । स्वच्छता और पवित्रता को ही लें । कौम बुरा कहेगा इन्हें ? किन्तु इनका अतिरेक आपको दूसरों से अलग कर देगा । दूसरों को गंदा या अस्पृश्य कहते-कहते आप स्वयं गंदे और अस्पृश्य हो जाएंगे । अफ्रीका के अनेक देशों में सफाई या स्वच्छता नाम का शब्द ही एलर्जी पैदा कर देता है । नाइजीरिया के प्रसिद्ध उपन्यासकार चिनुआ एचेबे ने अपने लेख 'उपन्यासकार एक शिक्षक' में हैरानी प्रकट की है कि स्वच्छता को देवत्व में बदलने की बातें किसी को क्यों सूझ जाती हैं जबकि बाद के कई मुद्दे सामने हैं । प्रो. एचेवे लिखते हैं-"अलग-अलग समाजों की खास जरूरतों का महत्व मुझे तब पता चला जब हाल ही में एक अंग्रेजी पॉप गीत मैंने सुना । शायद उसका शीर्षक था “मैं नहीं नहाया हफ्ते भर से' । एक पल को मुझे हैरानी हुई कि किसी को ऐसी बातें कैसे सूझ जाती हैं जबकि काम के कई मुद्दे सामने हैं । बाद में मुझे कौंधा के यह गायक उसी संस्कृति से जुड़ा है जो आत्मसंतुष्टि के युग में यह कहकर निंदित हो चुकी है कि धर्मपरायणता के बराबर है स्वच्छता । इस प्रकार मैं इसे नये दृष्टिकोण से देख सका - प्रतिशोध का दिव्य प्रशासक । हालांकि मैं यहां साफ कह देना चाहता हूं कि उसकी इन मान्यताओं की हमारे समाज को जरूरत नहीं है क्योंकि हमने स्वच्छता को देवत्व में बदलने का पाप नहीं किया है ।।24। भारत का दलित समाज स्वच्छता और पवित्रता के इतने कड़वे आचमन ले चुका है कि उसके बीच भी इस मूल्य की वैसी ही प्रतिक्रिया हो तो आश्चर्य नहीं । बहुत समय नहीं हुआ जब इसी स्वर्गादपि गरीयसी भारत भूमि में हमें नाई का स्पर्श हो जाने पर दूर खड़ा कर पानी के छींटों से शुद्ध किया जाता था और हरिजन का स्पर्श हो जाने पर तो दूर खड़ा करके बिना छुए ऊपर से बाल्टी उंडेल कर आपादमस्तक स्नान कराया जाता था । मूल दृष्टि में इस कृत्य को कोई कितना ही वैज्ञानिक सिद्ध करने का प्रयत्न क्यों न करे आज के समाज में यह मूल्य स्वीकार्य नहीं है । मूल्यों की शिक्षा को भी शैक्षिक आधार दृष्टि चाहिए । ___ स्पष्ट है कि आप भविष्योन्मुखी दृष्टि रखेंगे, पुराने मूल्यों का पुनरावलोकन करते रहेंगे और प्रसंग से कष्ट कर, युग-संदर्भो की अपेक्षा करके किसी मूल्य की शिक्षा का प्रयत्न नहीं करेंगे । जनवरी-मार्च 1993 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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