Book Title: Tulsi Prajna 1993 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 148
________________ मूल्य एवं शिक्षा : एक विश्लेषण मूल्य समाज को व्यवस्था देते हैं तथा व्यक्ति के व्यवहार की दिशा को आधार देते हैं । जिस समाज में मूल्य निर्धारित व द्वन्द्व रहित होते हैं, प्रत्येक सदस्य की भूमिका निश्चित होती है, वहां मूल्यों के विषय में निर्णय लेने की अथवा उनके प्रशिक्षण एवं विकास करने का प्रश्न नहीं उठता किन्तु एक जनतांत्रिक राज्य में जहां व्यक्तिगत चुनाव, व्यक्ति के विचारों का महत्त्व होता है वहां मूल्यों में द्वन्द्व की सम्भावना बन जाती है। मूल्यों के चुनाव के विकल्पों की सम्भावना बन जाने से उनके निर्णय व निश्चय की समस्या जटिल हो जाती है । कुछ मूल्यों के लाभ हानि से अधिक के निर्णय समस्या, मूल्यों व निश्चय करने की होती है । 142 आज हमारा विकासशील देश तीवग्रति से औद्योगिक विकास की ओर बढ़ रहा है । इस वैज्ञानिक युग में पुराने मूल्यों से उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं हो रही है । उनमें आस्था कम हो रही है किन्तु दूसरी ओर नवीन मूल्यों को भी स्थायित्व नहीं मिल पा रहा है । एक ओर हम पुराने मूल्यों में आस्था (विश्वास) बनाये रखने का प्रयत्न कर रहे हैं और दूसरी ओर नवीन मूल्यों का आकर्षण भी हमारे सामने है किन्तु उनको अपनाने में एक भय एवं शंका है । सार्वभौम शाश्वत मूल्यों के त्याग से उत्पन्न आत्मग्लानि की चिन्ता के कारण शारीरिक तथा मानसिक रोग ( रक्तचाप हृदयरोग श्वासरोग ) अनिश्चितता की स्थिति में सांवेगिक निर्णय लेने के परिणामस्वरूप अपचारी व्यवहार बढ़ता जा रहा है जिसकी चरम परिणति मानसिक रोगों अथवा हिंसा तथा आत्मघात में भी अधिकाधिक हो रही है । नवीन मूल्यों में भी अनिश्चतता की स्थिति से मूल्य हमें वह शक्ति दे पाने में असमर्थ हो रहे हैं जिससे स्वस्थ, सम्पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण हो सके । तीव्रगति से होने वाले सामाजिक, आर्थिक और औद्योगिक परिवर्तन से मानव व्यक्तित्व संकट में पड़ गया है । टाफलर न इसे “भविष्य आघात " की संज्ञा दी है । इस समस्या के प्रति हम सचेत हैं, ऐसा नहीं है । स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय से ही हम इस समस्या का समाधान खोज रहे हैं जिसका प्रमाण १६४८ के बाद के सभी शिक्षा आयोगों में नैतिक शिक्षा तथा मूल्यों की समस्या की चर्चा है | इससे शिक्षा तथा विद्यालय की भूमिका भी सर्वमान्य तथा स्वतः सिद्ध होती है । विद्यालय की भूमिका विद्यालय के अधिकांश क्रिया-कलाप प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मूल्यों की शिक्षा का कार्य करते रहते हैं । हम विद्यालय में नैतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय यहां तक कि अन्तर्राष्ट्रीय मूल्यों की शिक्षा देते हैं । जनतांत्रिक एवं मानवीय मूल्यों में आस्था का उत्कृष्ट कला की संस्तुति विद्यालय की शिक्षा का एक अंग है । विषयों के संज्ञानात्मक शिक्षण में भी शिक्षक के व्यक्तित्व तथा व्यवहार का और सहपाठियों के व्यवहार एवं विद्यालय के क्रिया कलापों का प्रभाव छात्र के मूल्यों पर पड़ता है किन्तु यह सभी प्रभाव वांछनीय हो यह आवश्यक नहीं ! इसी कारण वांछनीय मानवीय मूल्यों के विकास के लिये मूल्य परक शिक्षा की आवश्यकता है । मूल्यों की शिक्षा, जनतन्त्र में विद्यालय के सबसे महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्वों में से है । जनवरी - मार्च 1993 Jain Education International . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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