Book Title: Tulsi Prajna 1993 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 146
________________ 140 मूल्य एवं शिक्षा : एक विश्लेषण क्या मूल्यों की शिक्षा संभव है? कुछ विचारक यह मानते हैं कि मूल्यों की शिक्षा दी जा सकती है जबकि अन्य विचारक मूल्यों की शिक्षा को असम्भव मानते हैं । सुकरात का कहना था कि "ज्ञान ही सद्गुण है" अर्थात् यदि उचित मूल्यों की जानकारी बालकों को दे दी जाए तो बालकों में निःसन्देह सद्गुण आ जाएगा । सुकरात का यह विश्वास था कि मूल्यों की शिक्षा देकर व्यक्ति को उत्तम बनाया जा सकता है । ईसाई धर्म में यह माना जाता है कि बालक का जन्म पाप के परिणामस्वरूप हुआ है । मूल पाप के सिद्धान्त समर्थक ईसाई विचारकों की दृष्टि में मूल्यों की शिक्षा देना तालाब में जौ बोने के समान है। वे यह मानते हैं कि मूल्यों की शिक्षा से व्यक्ति में सदगुण आने की सम्भावना नहीं है। ___ जो विद्वान यह मानते हैं कि मूल्यों की शिक्षा नहीं दी जा सकती वे सुकरात के इन कथन को असत्य मानते हैं कि "ज्ञान ही सदगुण है.।" उनका कहना है कि सत्य, ईमानदारी, अस्तेय, धैर्य, इन्द्रियनिग्रह, क्षमा, पवित्रता, अक्रोध आदि नैतिक मूल्यों का केवल ज्ञान ही व्यक्ति को सत्यवादी, ईमानदार, धीर, क्षमाशील अथवा पवित्र नहीं बना सकता । छठी कक्षा का विद्यार्थी भी यह बात अच्छी तरह जानता है कि "सत्य बोलना चाहिए।" किन्तु यह आवश्यक नहीं कि इस जानकारी के कारण वह सत्य बोलता ही हो । सत्य बोलने एवं सत्य पर आचरण करने के लिए समस्त जीवन तपस्या करनी पड़ती है। महात्मा गांधी ने अपने पूरे जीवन को ही सत्य के प्रयोग में समर्पित कर दिया था और वे आजन्म इस पर आचरण करने . को प्रयत्नशील रहे । जहां तक जानकारी का प्रश्न है, “सत्य बोलना चाहिए" जैसे प्रत्यय का ज्ञान एक बालक को भी हो सकता है। ___ भारतीय वाङ्मय में एक प्रसंग आता है । गुरु द्रोणाचार्य कौरवों एवं पाण्डवों को विद्याभ्यास करा रहे थे। पहले दिन गुरुदेव ने पाठ पढ़ाया, "क्रोध नहीं करना चाहिए" और आदेश दिया कि इस पाठ को याद करके आना है । दूसरे दिन गुरुदेव ने बारी-बारी से सबसे पूछा और सबने उत्तर दिया कि उन्हें पाठ याद हो गया । जब युधिष्ठिर की बारी आई तो युधिष्ठिर ने स्पष्ट कहा कि उन्हें पाठ याद नहीं हुआ । अन्य भाइयों को अग्रिम पाठ पढ़ाया गया किन्तु युधिष्ठिर ने अगला पाठ नहीं पढ़ा । दूसरे दिन भी गुरुदेव के पूछने पर उन्होंने बताया कि अभी उन्हें पाठ याद नहीं हुआ । इसी प्रकार कई दिन बीत गये और युधिष्ठिर यही कहते रहे कि उन्हें पाठ याद नही । इस पर एक दिन द्रोणाचार्य को क्रोध आ गया और वे युधिष्ठिर को दण्ड देने लगे। युधिष्ठिर शान्त भाव से खड़े रहे और दण्ड सहते गए । अन्त में गुरुदेव ने पुनः कहा "बता, अभी याद हुआ या नहीं?" युधिष्ठिर ने उसी शान्त भाव से उत्तर दिया "गुरुदेव, मैं प्रतिदिन इस पाठ को याद करता रहा किन्तु यदा-कदा अपने भृत्यों पर, भाइयों पर अथवा अन्य पारिवारिक जनों पर क्रोध आ ही जाता था। अब मुझे ऐसा लग रहा है कि यह पाठ लगभग याद हो गया है । भविष्य में पुनः अवसर आने पर यदि बिलकुल क्रोध न आया तो कहूंगा जनवरी- मार्च 1993 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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