Book Title: Tulsi Prajna 1992 07 Author(s): Parmeshwar Solanki Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 5
________________ के दर्शनों को आये और उसी दिन बुजुर्गों को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने कहा ३ "पहले का समय अब आज नहीं रहा । वृद्ध कहते हैं- युवक उच्छृंखल हैं। माता पिता की आज्ञा में नहीं चलते हैं और युवक कहते हैं - वृद्ध रूढ़ि वादी हैं, जर्जर हैं। पुरानी रीतियों में पलते और जिद करते हैं । दोनों की बातें ठीक हैं। युवकों को अपनी उच्छृंखलता छोड़कर हर एक काम धैर्य और नम्रता से करना चाहिए और बुड्ढ़ों को भी अपनी खराब बातें छोड़कर अच्छाई का आदर करना चाहिए । तब ही साम्य हो सकता है । मैंने भी ११ वर्ष के शासन में यह अनुभव किया है कि आखिर युवक धार्मिक भावनाओं से दूर क्यों होते जा रहे हैं ? तो सोचा - युवक क्रान्ति चाहते हैं ।" इससे पूर्व 'भारतीय विज्ञान और विश्वशांति' विषय पर आचार्यश्री का अहिंसाअणुव्रत-संदेश १६, दिसम्बर १९४८ को जनपथ (१.१७) में छप चुका था - "पूर्वाचार्यों ने संकल्पी हिंसा छुड़ाने के लिए मध्यममार्ग का उपदेश किया । पूर्व दोनों प्रकार की हिंसाएं बन्धन अवश्य हैं, पर व्यापक अशांति की हेतु नहीं बनतीं । संकल्पी हिंसा सामूहिक अशांति को जन्म देती है । इसको त्यागने का नाम अहिंसा - अणुव्रत है । इसमें आरम्भी और विरोधी हिंसा का भी यथाशक्ति परिमाण करना आवश्यक है । अन्यथा वे भी बढ़ती-बढ़ती संकल्पी के रूप में परिणत हो जाती हैं । पूर्ण अहिंसा तक नहीं पहुंचने वाले व्यक्तियों के लिये अणुव्रत एक सुन्दरतम विधान है । इससे गृहस्थ जीवन के औचित्य - संरक्षण में भी बाधा नहीं आती और हिंसक वृत्तियां भी शांत हो जाती हैं ।" अप्पणा सच्च मेसेज्जा मेत्ति भूएसु कप्पए अर्थात् सत्य के अन्वेषण में लगे आचार्यश्री ने प्राणी मात्र के प्रति मंत्री भाव रखने की प्रवृत्ति के साथ शास्त्रों को देखा और पाया - जो समो सव्व भूएसु तसेसु थावरेसु य । तस्य सामाइयं होइ ईइ केवलि भासियं ॥ सूक्ष्म और स्थूल — कि त्रस और स्थावर, छोटे और बड़े, - सब जीवों पर जो समता और सम्भावना रखी जाती है, वही अहिंसा है, वही सामयिक है - यह तत्त्वदर्शी महर्षियों का उपदेश है । आचार्यश्री ने इसी उपदेश को अणुव्रत का नाम दिया | २८ फरवरी, १९४९ को अणुव्रत पर आचार्यश्री का पहला उद्बोधन हुआ - "जो व्यक्ति स्वयं उन्नत है, वही दूसरों को संघठित करने तथा उनमें क्रान्ति लाने में सफल हो सकता है। जन जागृति के पूर्व अपनी आत्म जागृति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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