Book Title: Tristutik Mat Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Lakshmichandra Amichandra Porwal Gudabalotara

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Page 12
________________ प्रस्तावना। १ सुना करो, बेशक उत्तर तो देना ही चाहिये, पर इस बात की भी खोज होनी चाहिये कि हमारे विषय में लिखने वाला कौन है और हम किस के ऊपर लिख रहे हैं । तीर्थवि०- हमने तो बहुत ही खोज की, लेकिन लिखने वाले का नाम किसीने नहीं बताया, इसी लिये गुप्त नाम से ही उत्तरदान पत्र लिखा है, उस में तुम्हारा नाम कहीं भी नहीं है । नाम से क्या करना है ? जब सारी पुस्तक ही हमारी निंदा से भर दी है तब नाम लिखने में क्या कसर रही। तीर्थवि०- ( हंस कर) ऐसा ही है तो जैसे हमने कई दफे सहन किया वैसे तुम भी एक बार सहन कर लेते !। मुझे इस वक्त चार गालियां देदो ! मैं सहन कर लूंगा, पर विना ही कारण हमारे पूज्य पुरुषों की कोई निंदा करे और हम सुन के मुख बंद कर पडे रहें-यह बात हम से नहीं होती, और न होगी। तीर्थवि०- यदि तुम से यह बात नहीं होती तो दूसरों ने क्या चूड़ियां पहिन ली हैं । यदि पहिन ली होंगी तो भी इस में तो कुछ भी अडचण नहीं है, क्यों कि आजकल तो चूडियां वाली भी पगड़ी वालों का सामना करने लगी हैं। मैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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