Book Title: Tran Laghu Rachnao
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 4
________________ ११८ अनुसन्धान ४९ दोहा : आज ससिच्छवि मो भो, चंदन शीतलनीर विरहानल होरी, ननुं(ऊर्नु?) लागत अंगि समीर. (१) सोरठा : चंदन शीतलनीर आज, ससिच्छवि मो भो __ लागत अंगि समीर विरहानल होरी मर्नु (१) पध्धडी छन्द : सब आज भो भो दुःखदाइ विरहानल चंदन हौं जराइ, ससि लागत अंगि मानुं अंगार उपमा कवि जाणत इह संसार (१) छन्द पाठावाधूआ(?) : हौं झलि विरहानलि जराइ, अलि कंत वले हवइ संसार जाणत इह मतुं मन अइसि, होरि लगाइ नई अंगार लागत अंगि चंदन उपमा ज बनाइ थई. (१) कुंडलिया (छन्द) : शीतलनीर समीर ससि, लागत अंगि अंगार कंत वले थइ आलिइब जाणत इह संसार जाणत इह संसार, आज सब मो दुःखदाइ उपमा अइसि बनाइ, बेडु सागर थइ नइ कवि शीतलनीर समीर राजसिउं इब ससिच्छवि- (१) 'गाथा (छन्द) : शीतलनीर समीर ससिच्छवि मो दुःखदाई आज ती सवि चंदन अंगि अंगार सु लागत हौ विरहानल झार जरावत- (१) श्लोक (छन्द) : शीतं नीरं समीरं व मालांव समीरंतं शशिच्छवि अहो राजन्न वेदाङ्ग, दुःखदा विरहानल (१) (?) अथ शृङ्गारकवित्वं : शीतलनीर समीरससिच्छवि आज भले वद मो सुखदाइ, लागत अंगि सिंगार जिउं चंदनउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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