Book Title: Tran Laghu Rachnao Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ सप्टेम्बर २००९ ११७ (२) श्रीविनयसागर कृत सिलोकानन्द कवित्व विनयसागरकृत दोहा : शीतलनीर समीर ससिच्छवि आज भजे सब मो दुःखदाई लागत अंगि अंगार सिउं चंदन हो, विरहानल झाल जराइ कंत चले थइ आलिइ छई उपमा कविसागर अइसी बनाइ जाणत इह संसार मतु मनमत्थ, हुवे नई होरी लगाइ. (१) दोहा : शीतल नीर समीर, सहित लागत अंगि अंगाई । ___ कंत चले थइ आलिइव जाणत इह संसार. (१) सोरठा : हो विरहानल झालि मो दुःखदाई सब भले कंत चले थइ आलि, शीतलनीर समीर ससि. (१) दोहा : चंदन हौं विरहानलई लागत है अंगि झाल शीतलनीर समीर ससि, कंत चले तइ आलि (१) सोरठा : लागत अंगि अंगार, चंदन हौं विरहानलई जाणत इह संसार, कंत चले थइ आलिइअ (१) दोहा : मनमथ होरी लगाइनइं, उपमा इसी बनाइ शीतल नीर समीर ससि, कंत चलइ दुःखदाई. (१) सोरठा : जाणत इह संसार कंत चले थइ आलिइ. लागत अंगि अंगार, शीतल नीर समीर ससि. (१) दोहा : मो दुःखदाइ सब भले, कंत चले थइ आलि शीतलनीर समीर ससि, हों विरहानल झालि. (१) सोरठा : कंत चले थइ आलि जाणत इह संसार मो । लागत अंगि अंगार चंदन हौ विरहानलइ. (१) दोहा : लागत अंगि अंगार सिउं, चंदन हुं दुःखदाइ __ कंत चले थइ उपमा अइसी आलि बनाइ. (१) सोरठा : अइसी आलि बनाइ, कंत बले थइ उपमा चंदन ही दुःखदाइ. विरहानल अंगारसिउं. (१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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