Book Title: Tran Laghu Rachnao Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 7
________________ सप्टेम्बर 2009 121 थारे ने मारे छे गौयमाजी, घणा कालरी प्रीत / / आगे आपे भेला रह्या जी, रहि लोढ-व(क?)डाइनी रीत जी, थे मोह कर्म लीयो जीत जी, आ केवल आडी भीत जी, चिंता म करो एकसीत जो, थे सदा रहो नर्चित जी, श्री० / / 9 / / अब क्यू इण भव आंतरो जी, आपे दोनु बरोबर होय / वीरवचन श्रवणे सुणी जी, तव हरष घणो होय जी, गुरु मोटा मलीया मोय जी, माहरे कमीय न रहि कोय जी, खेद परो दीयो छे खोय जी, रया वीरने सांहमो जोय जी, श्री० // 10 // सयमुख वीरे वखांणीओ जी, श्री गौतमने तेणी वार / माहरे तू सरीखो बीजो नही जी, पाखंडीयारो जीतणहार जी, चर्चा वादी तरत तयार जी, हेत जुक्ति अनेक प्रकार जी, चौद सहस साधु मझारजी, बीजा साधू सहु थारी लार जी, हीयडे हूयो हरख अपारजी, श्री० // 11|| काती वदि अमावस्या जी, मुक्ति गया श्रीवरधमांन / इंद्रभुतीने तव उपनो जी, निरमल केवलज्ञान जी, धरम दीयो नगर पूर गांमजी, पछे पोहता सीवपूर ठांम जी, सीध कीधां आतमकांम जी, ऋषि रायचंद कीया गुणग्राम जी, श्री० // 12 // जेमलजीरा प्रसादसुं जी, कीधो ए ज्ञान अभ्यास / संवत अढार चोतीसमे जी, नवमी सुद भाद्रवा मास जी, ए कीधो गोतमनो रास जी, सुणजो सहू मन उल्लास जी, पांम्यो अवीचल लीलविलास जी, सेहेर विकानेर चोमास जी, श्री० // 13 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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