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त्रण लघुरचनाओ
सं. विजयशीलचन्द्रसूरि प्रथम रचना श्री रैवतकगिरिमण्डन श्रीनेमिनाथ भगवाननी यमकालङ्कारबद्ध उपजातिछन्दोबद्ध संस्कृति स्तुति छे. श्री ऋषिवर्धनसूरि नामना जैन आचार्ये रचेली आ रचना १६मा शतकनी होय तेम सम्भवित जणाय छे. कृतिमां क्यांय संवतनो उल्लेख नथी. आ स्तुति साध्वी दिव्यगुणाश्रीजीए जूना डीसाना ग्रन्थभण्डारमांनी 'विशेषणवती' ग्रन्थनी प्रतिमांथी उतारो करी मोकली छे.
बीजी रचना मुनि विनयसागर रचित 'सिलोकानन्दकवित्व' नामे छे. आमां कविए पोतानी काव्यचातुरी सुपेरे प्रदर्शित करी छे. प्रियतमना विरहथी व्याकुल नारीनी उक्ति छे के "मारो कंत (प्रियतम) चाली गयो छे, अने तेना विरहनी अगनज्वालामां सळगी रहेली मारा माटे शीतल नीर, (शीतल) पवन, चन्द्रमा - आ बधां वानां दुःखदायी नीवडी रह्यां छे. चन्दननो लेप शरीरे लगाडं तो ते अंगाराना दझाडता स्पर्श समो अनुभवाय छे." कवि सागरे आवी उपमा रची छे."
आ एक ज उक्तिने कविए जुदा जुदा छन्दोमां, जुदी जुदी भङ्गिमाओथी आलेखी छे : ६ दोहा, ६ सोरठा, १ पद्धडी छन्द, १ कुंडलिया, १ अडिल्ल, १ श्लोक (संस्कृत) अने १ कवित्त, आम कुल १७ पद्योमां आ एकज वात के उक्ति कविए वर्णवी छे. काव्यनी आवी चमत्कृतिनी मोज मध्यकालना जैन कविओए खूब लूंटी छे, ते आवी रचनाओ जोतां जणाई आवे छे. कर्ता पोताने 'कवि सागर' तरीके ओळखावे छे. तेमना समय विषे कोई संकेत नथी, पण १८मो शतक होवानुं अनुमान करीए तो खोटा पडवानी झाझी दहेशत नथी.
आ रचना पण साध्वी श्री दिव्यगुणाश्रीजी तरफथी मळेली छे. थोडीक अशुद्ध रचना.
त्रीजी रचना गौतमगणधरनो रास छे. सं. १८३४मां बीकानेरमां जेमलजी ऋषिना शिष्य (?) ऋषि रायचंदे आ रास रच्यो छे तेवू तेनी १२-१३ कडीओ परथी नक्की थाय छे. मारवाडीमिश्रित गुजराती रचना.
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अनुसन्धान ४९
(१) आ. ऋषिवर्धनसूरिकृत
श्रीरैवतकमण्डन नेमिजिनस्तुति समुल्लसद्भक्तिसुराः सुरासुराधिराजपूज्यं जगदंगदं गदम् । हरन्तमीहारहितं हि तं हितं, नेमि स्तुवे रैवतके तकेतके ॥१॥ बिभर्ति यस्य स्तवनेऽवनेऽवनेरीशे रसं यद्रसना स ना सना । सिद्धेर्भवन्नन्ववरोऽवरो वरः, नेमि स्तुवे रैवतके तकेतके ॥२॥ यश:पटस्य प्रभवे भवे भवेऽभवन् स्वभावप्रगुणा गुणा गुणाः । यस्यातिहर्षं सुजनं जनं जनं, नेमि स्तुवे रैवतके तकेतके ॥३|| जिगाय खेलिं तरसा रसा रसातिरेकजाग्रन्मदनन्दनन्दनम् । यो बाहुदण्डं विनयं नयं नयं, नेमि स्तुवे रैवतके तकेतके ||४|| येनाङ्गराजी भयतो यतो यतोऽवगत्य तत्त्वं दुरितारितारिता । स कस्य नेष्टः सदयो दयोदयो, नेमि स्तुवे रैवतके तकेतके ||५|| सुरा अपि प्रोन्नतया तया तया, रूपस्य यस्या मुमुहुर्मुहुर्मुहुः । यस्योग्रजाताप्यजनीजनी जनी, नेमि स्तुवे रैवतके तकेतके ॥६॥ भवेऽत्र नाभा नवमेऽवमेवमे, जहासि तत् किंवदामाद माऽदमा । यं स्मेति भोज्या सहसाहसाह सा, नेमि स्तुवे रैवतके तकतके ७॥ वनेऽत्र दीक्षा जगृहे गृहे गृहे, स्थित्वाऽथ दला कनकं न कं न कम् ? संतोष्य येनाऽममताऽमताऽमता, नेमि स्तुवे रैवतके तकेतके ||८|| धर्मस्य तत्त्वे भवतोऽवतो बतोद्यमो विधेयो जगदेऽगदे गदे : येनाङ्गिनां संयमिनामिनामिना, नेमि स्तुवे रैवतके तकेतके ॥९॥ शरीरशोभाऽतिघना घना घना, प्रतापदीप्तिस्तरुणारुणारुणा । वाणी च यस्योल्लसिता सिता सिता, नेमि स्तुवे रैवतके तकेत के ।।१०।। तर्कव्याकरणागमादिचतुरस्फूर्जत्सुधासारवाक् पूज्यश्रीयशकीर्ति सूरि? ] गुरुणा ध्यानैकतानात्मना ! सूरिश्री ऋषिवर्धनेन रचिता, त्रैलोवचिन्तामणे: श्रीनेमेर्यमकोज्ज्वला स्तुतिरियं देयात्सदा मङ्गलम् ॥११।।
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(२) श्रीविनयसागर कृत
सिलोकानन्द कवित्व विनयसागरकृत दोहा :
शीतलनीर समीर ससिच्छवि आज भजे सब मो दुःखदाई लागत अंगि अंगार सिउं चंदन हो, विरहानल झाल जराइ कंत चले थइ आलिइ छई उपमा कविसागर अइसी बनाइ
जाणत इह संसार मतु मनमत्थ, हुवे नई होरी लगाइ. (१) दोहा : शीतल नीर समीर, सहित लागत अंगि अंगाई ।
___ कंत चले थइ आलिइव जाणत इह संसार. (१) सोरठा : हो विरहानल झालि मो दुःखदाई सब भले
कंत चले थइ आलि, शीतलनीर समीर ससि. (१) दोहा : चंदन हौं विरहानलई लागत है अंगि झाल
शीतलनीर समीर ससि, कंत चले तइ आलि (१) सोरठा : लागत अंगि अंगार, चंदन हौं विरहानलई
जाणत इह संसार, कंत चले थइ आलिइअ (१) दोहा : मनमथ होरी लगाइनइं, उपमा इसी बनाइ
शीतल नीर समीर ससि, कंत चलइ दुःखदाई. (१) सोरठा : जाणत इह संसार कंत चले थइ आलिइ.
लागत अंगि अंगार, शीतल नीर समीर ससि. (१) दोहा : मो दुःखदाइ सब भले, कंत चले थइ आलि
शीतलनीर समीर ससि, हों विरहानल झालि. (१) सोरठा : कंत चले थइ आलि जाणत इह संसार मो ।
लागत अंगि अंगार चंदन हौ विरहानलइ. (१) दोहा : लागत अंगि अंगार सिउं, चंदन हुं दुःखदाइ
__ कंत चले थइ उपमा अइसी आलि बनाइ. (१) सोरठा : अइसी आलि बनाइ, कंत बले थइ उपमा चंदन
ही दुःखदाइ. विरहानल अंगारसिउं. (१)
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अनुसन्धान ४९ दोहा : आज ससिच्छवि मो भो, चंदन शीतलनीर
विरहानल होरी, ननुं(ऊर्नु?) लागत अंगि समीर. (१) सोरठा : चंदन शीतलनीर आज, ससिच्छवि मो भो
__ लागत अंगि समीर विरहानल होरी मर्नु (१) पध्धडी छन्द :
सब आज भो भो दुःखदाइ विरहानल चंदन हौं जराइ, ससि लागत अंगि मानुं अंगार
उपमा कवि जाणत इह संसार (१) छन्द पाठावाधूआ(?) :
हौं झलि विरहानलि जराइ, अलि कंत वले हवइ संसार जाणत इह मतुं मन अइसि, होरि लगाइ नई
अंगार लागत अंगि चंदन उपमा ज बनाइ थई. (१) कुंडलिया (छन्द) :
शीतलनीर समीर ससि, लागत अंगि अंगार कंत वले थइ आलिइब जाणत इह संसार जाणत इह संसार, आज सब मो दुःखदाइ उपमा अइसि बनाइ, बेडु सागर थइ नइ कवि
शीतलनीर समीर राजसिउं इब ससिच्छवि- (१) 'गाथा (छन्द) :
शीतलनीर समीर ससिच्छवि मो दुःखदाई आज ती सवि चंदन अंगि अंगार सु लागत
हौ विरहानल झार जरावत- (१) श्लोक (छन्द) :
शीतं नीरं समीरं व मालांव समीरंतं शशिच्छवि
अहो राजन्न वेदाङ्ग, दुःखदा विरहानल (१) (?) अथ शृङ्गारकवित्वं :
शीतलनीर समीरससिच्छवि आज भले वद मो सुखदाइ, लागत अंगि सिंगार जिउं चंदनउ
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विरहानल झाल हराइ, कंत मिले थइ आलिइ छइं, कविसागर
अइसी उप[मा] बनाइ, तारूणइ मनमथ हुवेनइं हौरि जगाइ- (१) (छ दोहा, छ सोरठा, पद्धडिया छन्द, कुंडलीया, गाहा, अड्डिल, कवित सिलोकानंद)
इति श्री विनयसागरमुनिविरचितं[सि] लोकानन्द कवित्वं सम्पूर्ण ।
(३)
श्री गौतम रास नमः सिद्धं ।
दूहा || गुण गाउ गोतमतणा लबधितणा भंडार । वडा सिख भगवंतरा जांणे जग संसार ॥१॥ प्रतीबोध्या प्रभू कने गणधर गौतमसांम । संजम पाली सिध हूया लिजे नित प्रते नाम ॥२॥
ढालः
तिरथनाथ त्रिभोवनधणी प्रभूसासणरा सिरदार । भगति किया भगवंतरी मनवंछितफल-दातारजी समरां पण सिवसुखकारजी, सदा वरते जयजयकारजी, प्रभू पोहता मुक्ति मझार जी, प्रभु थाप्या तीरथ च्यार जी, च्यार संघ में सिरदारजी, गौतम नामे गणधार जी, ज्याने हो जो मारो नमस्कार जी, दिहाडामांहे दस वार जी,
श्री गौतमसांमिमां गुण घणा ॥१॥ सीलमा सोना सारीखा जी, सुंदर रूप सरीर । कनक कसोटी चढावियो भगवतिमे भांष्यो वीर जी, दीठा हरखे हइयारो हीरजी, सामि सायर जेम गंभीर जी, वलि क्षमदमउपसम धीर जी, ज्यारी वांणि मिठी जाणो खिरजी, मीठो खिरसमूद्ररो नीर जी, षटकाय जीवारा पीर जी, वीररा हूया तन वजीर जी, श्री गौतमसांमिमां गुण घणा ॥२॥
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अनुसन्धान ४९
गौरा ने घणु फुटरा जी, कंचन कोमल गात्त ।। देही ज्यारी दिपे अतिघणि, कही जाय केतरीक वात जी, देवता पण कोण मात जी, रोगरहित काया हाथ सात जी, सेवा कीधी दिन ने रात जी, पूछा कीधी जोडी दोनु हाथ जी, कही जाय कठा लगे वात जी, ज्यारे वीरे माथे दीधो हाथ जी, श्री० ॥३॥ प्रथम संघेण संहाण छे जी, सांमी घोरगुणे भरपूर घोर ब्रह्मचर्ये भर्या, वली तपसी घोर करूर जी, कायर पूरुष कंप जाय दूर जी, दीपति तपस्या करे करम चूर जी वीररा हूया हकमी हजूरजी, माहरी वंदणा उगमते सूर जी, श्री० ॥४॥ अभिग्रह कीधा आकरा, जि विस्तार भगवती मांय । चार ज्ञान चौद पूरवी जी, वलि तेजुलेसा रही पिंडमाय जी, दपट राखी क्षिमा मन लाय जी, उकडु बेठा सीस नमाय जी, वीर सु नेडा अलगा न थाय जी, ज्यारि करणिमे कमीय न कांयजी,
श्री० ॥५॥ पूछा ज्या कीधी घणी जी, आंणी मन आणंद । श्रद्धा सांसो उपनो जी, कतोहल छे उछरंग जी, वांद्या श्रीवीरजिणंदजी, पूछा देस प्रदेस ने खंध जी, अनंतदर्सन त्रसलानंदजी, मेल्या सुत्रमे संधोसंध जी, ज्याने सेवे सुर नर वृंदजी, जिम सोभे तारामें चंदजी, श्री० ॥६॥ सुत्र भगवतिमां पूछीओ जी, प्रष्ण छत्रीस हजार । अंग उपांगमे वलि पुछीया जी, प्रष्ण अनेक प्रकारजी, तीरथनाथे काढ दिया लार जी, गोतमे लिया रदियमे धारजी, जारी बुधिरो नहि पार जी, भवजीवांरा तारणहार जी, धणा जीवासु कीयो उपगार जी, जाउ पूरुषारि बलीहारि जी, श्री० ||७|| इंद्रभूति मन चिंतवेजी, मोने क्यू नहि उपजे ग्यान । खेद पाया प्रभू देखने जी, बोलायो श्रीवरद्धमान जी, मनवंछित फल चै दान जी, गौतम उभो सनमूख आंण जी, चित निरमल ज्यारौ ध्यान जी,
श्री० ॥८॥
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________________ सप्टेम्बर 2009 121 थारे ने मारे छे गौयमाजी, घणा कालरी प्रीत / / आगे आपे भेला रह्या जी, रहि लोढ-व(क?)डाइनी रीत जी, थे मोह कर्म लीयो जीत जी, आ केवल आडी भीत जी, चिंता म करो एकसीत जो, थे सदा रहो नर्चित जी, श्री० / / 9 / / अब क्यू इण भव आंतरो जी, आपे दोनु बरोबर होय / वीरवचन श्रवणे सुणी जी, तव हरष घणो होय जी, गुरु मोटा मलीया मोय जी, माहरे कमीय न रहि कोय जी, खेद परो दीयो छे खोय जी, रया वीरने सांहमो जोय जी, श्री० // 10 // सयमुख वीरे वखांणीओ जी, श्री गौतमने तेणी वार / माहरे तू सरीखो बीजो नही जी, पाखंडीयारो जीतणहार जी, चर्चा वादी तरत तयार जी, हेत जुक्ति अनेक प्रकार जी, चौद सहस साधु मझारजी, बीजा साधू सहु थारी लार जी, हीयडे हूयो हरख अपारजी, श्री० // 11|| काती वदि अमावस्या जी, मुक्ति गया श्रीवरधमांन / इंद्रभुतीने तव उपनो जी, निरमल केवलज्ञान जी, धरम दीयो नगर पूर गांमजी, पछे पोहता सीवपूर ठांम जी, सीध कीधां आतमकांम जी, ऋषि रायचंद कीया गुणग्राम जी, श्री० // 12 // जेमलजीरा प्रसादसुं जी, कीधो ए ज्ञान अभ्यास / संवत अढार चोतीसमे जी, नवमी सुद भाद्रवा मास जी, ए कीधो गोतमनो रास जी, सुणजो सहू मन उल्लास जी, पांम्यो अवीचल लीलविलास जी, सेहेर विकानेर चोमास जी, श्री० // 13 //