SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० अनुसन्धान ४९ गौरा ने घणु फुटरा जी, कंचन कोमल गात्त ।। देही ज्यारी दिपे अतिघणि, कही जाय केतरीक वात जी, देवता पण कोण मात जी, रोगरहित काया हाथ सात जी, सेवा कीधी दिन ने रात जी, पूछा कीधी जोडी दोनु हाथ जी, कही जाय कठा लगे वात जी, ज्यारे वीरे माथे दीधो हाथ जी, श्री० ॥३॥ प्रथम संघेण संहाण छे जी, सांमी घोरगुणे भरपूर घोर ब्रह्मचर्ये भर्या, वली तपसी घोर करूर जी, कायर पूरुष कंप जाय दूर जी, दीपति तपस्या करे करम चूर जी वीररा हूया हकमी हजूरजी, माहरी वंदणा उगमते सूर जी, श्री० ॥४॥ अभिग्रह कीधा आकरा, जि विस्तार भगवती मांय । चार ज्ञान चौद पूरवी जी, वलि तेजुलेसा रही पिंडमाय जी, दपट राखी क्षिमा मन लाय जी, उकडु बेठा सीस नमाय जी, वीर सु नेडा अलगा न थाय जी, ज्यारि करणिमे कमीय न कांयजी, श्री० ॥५॥ पूछा ज्या कीधी घणी जी, आंणी मन आणंद । श्रद्धा सांसो उपनो जी, कतोहल छे उछरंग जी, वांद्या श्रीवीरजिणंदजी, पूछा देस प्रदेस ने खंध जी, अनंतदर्सन त्रसलानंदजी, मेल्या सुत्रमे संधोसंध जी, ज्याने सेवे सुर नर वृंदजी, जिम सोभे तारामें चंदजी, श्री० ॥६॥ सुत्र भगवतिमां पूछीओ जी, प्रष्ण छत्रीस हजार । अंग उपांगमे वलि पुछीया जी, प्रष्ण अनेक प्रकारजी, तीरथनाथे काढ दिया लार जी, गोतमे लिया रदियमे धारजी, जारी बुधिरो नहि पार जी, भवजीवांरा तारणहार जी, धणा जीवासु कीयो उपगार जी, जाउ पूरुषारि बलीहारि जी, श्री० ||७|| इंद्रभूति मन चिंतवेजी, मोने क्यू नहि उपजे ग्यान । खेद पाया प्रभू देखने जी, बोलायो श्रीवरद्धमान जी, मनवंछित फल चै दान जी, गौतम उभो सनमूख आंण जी, चित निरमल ज्यारौ ध्यान जी, श्री० ॥८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229529
Book TitleTran Laghu Rachnao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size291 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy