Book Title: Tran Chauvisi Viharman Jin Stavan Author(s): Kalyankirtivijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ (५०) बीजन जिण सूरदेव उमउं तु भमरु श्री सुपासजिणेस तु । चउत्थर संप्रभसामि जयउ तु भमरु. टालइ सयल किलेस तु ॥ १९ सरवानुभूति जिण पांचमउ तु भमरु छट्टा श्री श्रुतदेव तु। उदयजिणेसर सातमउ तु भमरु. पेढाल पणमउं हेव तु ॥ २० पोटिल जिणवर जाणीइ तु भमरु. दसमां सितकीरति सामि तु । सुव्रतसामि अग्यारमउ तु भम. अममह करडं प्रणाम तु ॥ २१ 4 • (वस्तु) भवि जिणवर, भवि जिणवर, थुणउं त्रिणकाल पद्मनाम भूर देव नमउं, सुपाससामि सयंप्रभु जिनेश्वर । सर्वानुभूति श्रीदेव श्रुत, उदयनाथ पेढाल जिणवर | पोटिलसामी जग जयउ, अम[म] पणमउं जिणवर बार ।। २२ (चतुर्थभाषा) दह त्रीजउइए देव निकषाय, निप्पलाग जगि जाणीए । पनरमउ ए निरममसामि, चित्रगुपति मनि आणी ए ।। २३ सतरमउ ए समाधि जिणंद, संवर नमउं अट्ठारमउ ए । जिसोधर ए पणमउ हेव, विजयसामि नमउं वीसमउ ए ॥ २४ एकवीसमउ ए मल्ल जिणंद, देवनमउं बावीसमउ । वीसमउ ए अनंतवीरजि, भद्रकृत ध्याउं चउविसमउ ए ॥ २५ Jain Education International ( वस्तु) नमउं निरंतर, नमउं निरंतर, देव निकषाय निप्पलाग निरमम सहित, चित्रगुपति श्रीसमाधजिनवर। संवर जिसोधर विज[य], जिण मल्लदेव श्री अनंतवीरजि । भद्रकृत ए चउवीस जिन, पणमउ भवियण लोय । विहरमाण वीसह तणां, नाम सुणउ सहू कोय ॥ २६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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