Book Title: Tran Chauvisi Viharman Jin Stavan Author(s): Kalyankirtivijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 5
________________ (51) (पंचम भाषा) श्री सीमंधर करउं प्रणाम, बीजा जुगंधर लिउ नाम / बाहु सुबाहु जिणवर नमउं ए॥ 27 / / सुजात सामि पांचमा जिणेसर, [छठा स्वयंप्रभजि सातमा ऋषहेसर अनंत]जि ध्याउं आठमउ ए।। 28 सूरप्रभ सामि विसाल नमीजइ, अग्यारमउ जिन वजधर पणमीजइ। चंद्रानयन प्रभु बारमउ ए॥२९ दहवीजउ चंद्रबाहु भणीजइ, भुजंग सामि ईश्वर पणमीजइ। सोलमउ जिन नेमिप्रभजउ॥ 30 सतरमउ वीरसेन महाभद्र जिनवर(जिनेसर), देवजस उगणीसमउ तित्थेसर। अजितवीरजि वीसइ नमउं ए॥ 31 जे नर ए नारी वृंद प्रह ऊठी ए, जिन नमइ ए ते लहइं ए सुररिद्धि। नरय तिरीयगति नवि भमई ए॥३२ धन धन ए ते दिन रातिय, सफल जनम तीहं जाणीइए जिणिइ खिणिइ ए बाणू जिणंद, भाव सहित मनि आणीइ ए॥ 33 (भाषा) श्री रयणसेहर, गरुअ गणहर, सीसवंछितदायको। जयवंत श्रीगुरु लखिमीसागर-सूरि तपगछ नायको॥ तुम सीस भत्तिहिं, एकचित्तिहि, थुणिइ जिणवर इण परे। प्रह ऊठि जे नरनारि प्रणमई सयलमंगल तीहं घरे।। 34 इति श्रीत्रिणि चउवीसी-विहरमाण स्तवनं संपूर्णम् / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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