Book Title: Tran Chauvisi Viharman Jin Stavan Author(s): Kalyankirtivijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ (४९) अस्ताघ नमीश्वर अनील, यशोधर कृतार्थ निश्चल। शुद्धमति सार शिवकर, स्यंदन संप्रति नमउ।। १० (द्वितीय भाषा) पिहलउं पणमउं आदिजिण, बीजउ अजिय जिणेस तु । संभव बीजउ जगि जयउ ए, अभिनंदण पणमेस तु।। ११ सुमतिनाथ जिण पांचमउए, छट्ठा पुमप्पह नाम तु । सुपासजिणेसर सातम(उ)ए, चंद्रप्रभ करउं प्रणाम तु ॥१२ नउमा सुविधिजिणेसर नमउ, दशमा शीतल सामी तु। श्री श्रेयांस अग्यारमा ए, वासुपूज्य पणमामि तु ॥१३ दह त्रीजउ श्री विमला नमउं, चउदमउ अनंतजिणेस तु। धरमनाथ प्रभू पनरमउ, सोलमा शांति जिनेस तु॥ कुंथुनाथ प्रभु सतरमउ ए, अरनाथ नउ सवि दीस तु । ओगणीसमउ जिणवर जयउ ए मल्लि, मुनिसुव्रत वीस तु ।। १५ हउं नमि नमउं एकवीसउ, बावीसमउ श्रीनेमि तु। पाससामि त्रेवीसमउ ए, चउवीसमउ वद्धमाणसामि तु ॥ १६ (वस्तु) आदि जिणवर, आदि जिणवर, अजिय जिणनाह संभव अभिनंदण सुमति, पद्मप्रभ श्रीसुपास चंद्रप्रभ । सुविधि सीतल श्रेयांस जिण, वासुपूज्य श्रीविमल अनंतजिण ।। धर्म शांति कुंथ अर मल्लि, जिणमुणिसुव्रत नमि नेमि। पास वीर भवियणनमीय, जिम पामउ शिव खेमि॥ १७ (जीतीय भाषा) अनागत जिणवर हुं नमउं तु भमस्ली, पिहलङ पढम जिणंद। पउमनाऊ भगि जाणीइ तु भम, उम्मुलइ दुहकंद तु॥ १८ १. तेरमा.। २. उन्मूलन करे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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