Book Title: Tran Chauvisi Viharman Jin Stavan Author(s): Kalyankirtivijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ (४८) पाप ताप सवि जाई नामिइं, महाजस चउत्था देव।। ४ पांचमउं पणमउं विमलजिणेसर सरवानू(नु) भूति छठा तित्थेसर, जिणवर, सुखदातारो। सातमउ सामी सीमंधर ध्याउं आठमउ दत्त जिणंद आराहउं, जिम पामउं भवपारो ॥ ५ ॥ नउमउ दामोदर पणमीजइ। दसमा देव सुतेज थुणीजइ, जाणीजइ जिणसारो। सामीनामि जाई सवि रोगा। मुनि(सु)व्रत पूजिई संयोगा, अनंत सुखदातारो॥ ६ दह त्रीजउ श्रीसुमति नमीजइ शिवगति चउदसमउ पभणीजइ, जाणी जिणवर सार। दह पंचम अस्ताघ जिणेश्वर सोलसमउ पणमउं नमीश्वर, सफल काउं संसार॥ ७ अनिलनाथ सतरसमउ जिणवर अष्टादसमउ (निरंतर) सिरि यशोधर सार। कृपासागर कृतार्थ भणीजइ जिनेश्वर सामि वीसमउं थुणीजइ, जाणी नाम विचार॥ ८ शुद्धमति जिणवर नयणानंदन बावीसमउ जिन दुरिय-विहंडन, शिवकर नमउं सुविसाल। स्पंदननाथ नमउं सिरनामी चउवीसमउ जिणवर मणि आणी, संप्रति नमउं त्रिकाल ।। ९ (वस्तु) केवलनाणी, केवलनाणी, नमउं निरवाणी सागर महाजस विमल जिण, सर्वानुभूति सीधर दत्त । दामोदर सुतेज सामी, मुनिसुव्रत सुमति शिवगति ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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