Book Title: Tirthankar Vandana
Author(s): Ratnatrayvijay
Publisher: Ranjanvijayji Jain Pustakalay

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Page 35
________________ ७७ क्रम प्रभु का समवसरण की रचना १. ४८ कोस (१४४ कि.मी.) २. ४६ कोस (१३८ कि.मी.) ३. ४४ कोस (१३२ कि.मी.) ४. ४२ कोस (१२६ कि.मी.) ५. ४० कोस (१२० कि.मी.) ६. ३८ कोस (११४ कि.मी.) ७. ३६ कोस (१०८ कि.मी.) ८. ३४ कोस (१०२ कि.मी.) ९. ३२ कोस (९६ कि.मी.) १०. ३० कोस (९० कि.मी.) ११. २८ कोस (८४ कि.मी.) १२. २६ कोस (७८ कि.मी.) १३. २४ कोस (७२ कि.मी.) १४. २२ कोस (६६ कि.मी.) १५. २० कोस (६० कि.मी.) १६. १८ कोस (५४ कि.मी.) १७. १६ कोस (४८ कि.मी.) १८. १४ कोस (४२ कि.मी.) १९. १२ कोस(३६ कि.मी.) २०. १० कोस (३० कि.मी.) २१. ८ कोस (२४ कि.मी.) २२. ६ कोस (१५ कि.मी.) २३. ५ कोस (१२ कि.मी.) २४. ४ कोस (१ योजन) ७८ प्रथम देशना का विषय यतिधर्म एवं श्रावक धर्म धर्मध्यान के चार पाया अनित्य भावना अशरण भावना एकत्व भावना संसार भावना अन्यत्व भावना अशुची भावना आश्रव भावना संवर भावना निर्जरा भावना ७९ प्रभु के शासन में नये तीर्थंकर भ. के आत्मा मरिचि २८ वर्मा राजा हरिषेण-विश्वभूति श्रीकेतु-त्रिपुष्ठधन मरुभूति - श्रीकेतु-अमिततेज नंद- नंदन - शंख-सिद्धार्थ धर्म भावना बोधिदुर्लभ भावना लोक भावना मोक्ष का उपाय. इन्द्रियों का विजय मनः शुद्धि रागद्वेष मोह पर विजय सामायिक के उपर यतिधर्म एवं श्रावक धर्म श्रीवर्मा - रावण - नारद श्रावक करण चार महाविगई के पर १२ व्रत १५ कर्मा दान के वर्णन यतिधर्म गृहस्थ धर्म गणधर वाद श्रीकृष्ण अंबड- सत्यकी - आनंद श्रेणीक सुपार्श्व पोटील उदायी - दृढायु-शंखशतक-सुलसा - रेवति

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