Book Title: Tavesu va Janma Bambhachera
Author(s): Muditkumar
Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf

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Page 4
________________ दर्शन दिग्दर्शन पालनीय होते हैं। उनकी मूल्यवत्ता के सामने यह नश्वर जीवन ना कुछ है। वस्तुतः ब्रह्मचर्य का पालन दुष्कर होता है। और खतरे के स्थान में रहकर भी उसको विशुद्ध रखना महादुष्कर होता है। उत्तराध्ययन का यह घोष इस बात को बलवान बनाता है - _ 'उग्गं महव्वयं बंभं, धारेयव्वं सुदुक्करं' – उग्र ब्रह्मचर्य महाव्रत को धारण करना बहुत ही कठिन कार्य है। प्रस्तुत प्रसंग में उत्तराध्ययन के टिप्पणों में एक ऐतिहासिक प्रसंग दिया गया है, वह इस प्रकार है चातुर्मास प्रारम्भ होने को था। स्थूलिभद्र सहित चार मुनि आचार्य सम्भूतविजय के पास आए। सबने गुरूचरणों में अपना-अपना निवेदन प्रस्तुत किया। एक ने कहा - गुरुदेव! मैं सिंह की गुफा में अपना चातुर्मास बिताना चाहता हूं। दूसरे ने सांप की बांबी पर साधना करने की इच्छा प्रगट की। तीसरे ने पनघट की घाट पर और चौथे मुनि ने कोशा वेश्या की चित्रशाला में रहने की अनुमति चाही। गुरू ने उन्हें स्वीकृति दे दी। ___चार मास बीते। सभी निर्विघ्न साधना सम्पन्न कर आचार्य के पास आए। आचार्य ने पहले मुनि को 'दुष्कर कार्य करने वाले' के संबोधन से संबोधित किया। उसी प्रकार दूसरे, तीसरे मुनि के लिए भी यही सम्बोधन प्रयुक्त किया। किन्तु स्थूलिभद्र को देखते ही आचार्य ने उन्हें 'दुष्कर-दुष्कर, महादुष्कर' कहकर संबोधित किया। तीनों मुनियों को गुरू का यह कथन बहुत अखरा। वे अपनी बात कहें उससे पूर्व ही आचार्य ने उनको समाहित करते हुए कहा - शिष्यों ! स्थूलिभद्र कोशा वेश्या की चित्रशाला में रहा। सब प्रकार से सुविधाजनक चिरपरिचित स्थान, अनुकूल वातावरण, प्रतिदिन षडरस भोजन का आसेवन और फिर कोशा के हावभाव। सबकुछ होते हुए भी क्षण भर के लिए मन का विचलित न होना, कामभोगों के रस को जानते हुए भी ब्रह्मचर्य व्रत की कठोर साधना करना कितना महादुष्कर कार्य है ? यह वही कोशा है, जिसके साथ ये बारह वर्ष तक रहे थे। वहां रहकर इन्होंने अपनी साधना ही नहीं की है, अपितु कोशा जैसी वैश्या को भी एक अच्छी श्राविका बनाया है। अतः इनके लिए यह सम्बोधन यथार्थ है। उनमें से एक मुनि ने गुरूवचनों पर विपरीत श्रद्धा करते हुए कहा-कोशा के यहां रहना कौन सा महादुष्कर कार्य है ? वहां तो हर कोई साधना कर सकता है। आप मुझे आज्ञा दें, मैं अगला चातुर्मास वहां बिताऊंगा। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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