Book Title: Tavesu va Janma Bambhachera
Author(s): Muditkumar
Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 1
________________ स्व: मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ तवेसु वा उत्तम बंभचेरं जीवन का लक्ष्य आत्महित, सुखानुभूति व शांतिप्राप्ति होता है, होना चाहिए। स्थायी और चैतसिक सुख संयम व त्याग-प्रत्याख्यान से प्रसूत होती है । आगम - साहित्य में प्रत्याख्यान के दो प्रकार बतलाए गए हैं - १. मूलगुण प्रत्याख्यान २. उत्तरगुण प्रत्याख्यान । आध्यात्मिक साधना के लिए जो गुण अनिवार्य होते हैं वे मूलगुण कहलाते हैं साधना के विकास के लिए किए जाने वाले निर्धारित प्रयोग उत्तरगुण कहलाते हैं साधना के विकास के लिए किए जाने वाले निर्धारित प्रयोग उत्तरगुण कहलाते हैं । मूलगुण प्रत्याख्यान के दो प्रकार हैं - सर्वमूलगुण प्रत्याख्यान और देशमूलगुण प्रत्याख्यान । इनमें प्रथम सर्वविरत ( मुनि) के लिए और दूसरा देशविरत (श्रावक) के लिए आचरणीय होता है । सर्वमूलगुण प्रत्याख्यान के पांच प्रकार हैं १. सर्वप्राणातिपात विरमण २. सर्व मृषावाद विरमण ३. सर्व अदत्तादान विरमण ४. सर्व मैथुन विरमण ५. सर्व परिग्रह विरमण | - महाश्रमण मुदित कुमार देश मूलगुण प्रत्याख्यान के भी पांच प्रकार हैं - १. स्थूल प्राणातिपात विरमण २. स्थूल मृषावाद विरमण ३. स्थूल अदत्तादान विरमण ४. स्थूल मैथुन विरमण ५. स्थूल परिग्रह विरमण । उत्तरगुण प्रत्याख्यान के दो प्रकार हैं - १. सर्व उत्तरगुण प्रत्याख्यान २. देश उत्तरगुण प्रत्याख्यान । सर्व उत्तरगुण प्रत्याख्यान के दस प्रकार बतलाए गए हैं १. Jain Education International 2010_03 अनागत प्रत्याख्यान - भविष्य में करणीय तप को पहले करना । जैसे पर्यूषण पर्व के समय आचार्य, तपस्वी, ग्लान आदि के वैयावृत्त्य में संलग्न रहने के कारण मैं प्रत्याख्यान - तपस्या नहीं कर सकूंगा - इस प्रयोजन से अनागत तप वर्तमान में किया जाता है । १५२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6