Book Title: Tavesu va Janma Bambhachera
Author(s): Muditkumar
Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf

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Page 3
________________ । स्वः मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ 388888888888888888888 जह किपागफलाणं परिणामों न सुंदरो। एवं भुत्ताण भोगाणं परिणामों न सुंदरो ।। जिस प्रकार किपाक फल खाने में अच्छे लगते हैं, किंतु उनका परिणाम असुन्दर (प्राणान्त) रूप में होता है, उसी प्रकार भोग भोगकाल में सुखद लगते हैं, किन्तु परिमाण काल में वे दुःखदायी हो जाते हैं। संस्कृत साहित्य में भी कहा गया है - इक्षुवद विरसाः प्रान्ते सेविता स्युः परे रसाः। सेवितस्तु रसः शान्तः सरस स्यात परम्परम ।। अन्य रस सेवित होने पर अन्त में इक्षु की भांति विरस बन जाते हैं। शान्त रस एक ऐसा रस है जो सेवित होने पर आगे से आगे सरस बनता जाता है। शान्त रस अतीन्द्रिय सुख होता है। उसकी प्रकृति वैषयिक सुखों से भिन्न प्रकार की है। वह स्थायी व सदा सुखदाय होता है। अतीन्द्रिय सुख को पाने के लिए वैषयिक सुखों से विरत होना, अनासक्त होना अनिवार्य होता है। - ऐन्द्रियक सुखों में प्रमुख स्थान अब्रह्मचर्य का है। शाश्वत सुखों के अभीप्स व्यक्ति के लिए इससे विरत होना अनिवार्य है। अध्यात्म के लिए समर्पित व्यक्तियों (साधुयों) के लिए तो ब्रह्मचर्य की पूर्णतया आराधना आवश्यक है । वह साधुत्व का केन्द्रीय तत्त्व है । संन्यस्त जीवन जीने वालों के लिए कंचन (धन) और कामिनी (स्त्री) से विरत रहना मौलिक आचारसंहिता है। गृहीत मौलिक व्रत की सुरक्षा के लिए अपेक्षित होने पर प्राणत्याग भी उपादेय माना गया है। पोरूष के प्रेरक पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी के गीत की एक पंक्ति मननीय है - ___“प्राणों की परवाह नहीं है, प्रण को अटल निभाएंगे।" ब्रह्मचर्य खतरे में पड़ जाए तो उसकी सुरक्षा के लिए आवश्यक प्रतीत होने पर यथाविधि मरण का वरण भी मुनि के लिए आगम विहित है। मुनि के लिए जीवन और मृत्यु गौण हैं, उसके लिए संयम अथवा स्वीकृत मौलिक व्रतों की सुरक्षा मुख्य बात है। जीवन तो अनंत बार मिल गया। उसकी क्या मूल्यवत्ता है ? मूल्यवत्ता चारित्र की आराधना की है। मुनि हो अथवा समण, उसके लिए सत्य, ब्रह्मचर्य जैसे मौलिक व्रत सिद्धान्ततः निरपवाद Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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