Book Title: Tattvarthvrutti Author(s): Jinmati Mata Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 2
________________ मार्गदसाम्पादकीष श्री सुविधिसागर जी महाराज शानपीठ मुनिदवी जैन ग्रन्थमालाम अकल ट्वीय वाङ्मय सम्पादन संशोधन के साथ ही दूसरा कार्य चालू है-तत्त्वार्थमूत्रकी अमुद्रिन टीकाओंका प्रकाशन । इसी कार्यक्रम में श्रुतसागररि विवित तत्त्वार्थवत्ति योगदेवविरचित नत्वार्थसृखबाधवृत्ति और प्रमाचन्द्रकृत तत्त्वावत्तिटिप्पणका संपादन-सशोधन हो चुका है। तत्त्वार्थवातिकका तीन ताडपत्रीय तथा तीन कागजकी प्रतियोंके आधारमे सम्पादन हो रहा है। बड़े बडे ग्रन्थीका अक्षरानुवाद जितना समय और भक्ति लेता है, उसनी उसकी उपयोगिता सिद्ध नहीं होती । कारण, संस्कृताम्यगी तो मलग्रन्थमे ही पदार्थ बांध कर लेते है और भाषाभ्यासी के लिए अक्षणनुवादका कोई विशिष्ट उपयोग नहीं. अत: बंद ग्रन्थमा प्रकवार हिन्दी सालिखा जाना व्यवहार्य समझकर तत्त्वावृति ग्रन्थका, जो परिमाणमें ... दलाल संक्षेपमं हिन्दी शान दिखा। इमाम नत्वामसूत्र पर अतसागरिका जी विवनन हैं बह गूग संगी। दिगम्बर' बामपर्व शुद्ध संपाश्नमें नाड़त्रीय प्रतियां बहुमूल्य मिद हुई है। न्याय भुवचन्द्र और न्यायविनिश्नन विवरण के सम्पादनमें ताइपयीय प्रतियां ही पागद्ध और मंगोधनता मुख्य गाधन रही है। इसी तरह तत्त्वार्थवामिने. अद्धिपन्न मरकरणका नम्पादन भी दक्षिणकी नानीय प्रतियोमही हो सका है। इस तत्त्वार्थति मगादनग बनारस, आग और दिल्लीको प्राचीन बागजी प्रतियोला उपयोग तो किया ही गया है पर जो विशिष्ट प्रति हमें मिली और जिसके आधार पर सरकाराणशद्ध मम्पादित हुआ, वह है मुनिद्रीकी ताडपत्रीय प्रति। आरा जन सिद्धान्त भवन मे प्राप्त हई प्रनिती आ. संज्ञा है । प्राय: अशुद्ध है। बनारस स्यागाद विद्यालयले प्राप्त हाई प्रतिकी व संज्ञा है। यह भी अशुद्ध है। दिल्ली की प्रनि श्री गन्नालालजी अग्रवालकी कृपारा प्राप्त हुई है । इराकी नजाद है । यह अपक्षाकृत शुद्ध है। जैन मन्दिर बनारमको प्रतिकी मंजा ज है। यह प्राचीन और शड़ है। गडबिद्री जन ग.की ताडपत्रीय प्रतिको पंजा ताई। यह कलही लिपि में लिखी हर है और पद्ध है। इस तरह पांच प्रनियों के आधार इमका मम्पादन किया गया है। ग्रन्थान्तरोंसे उद्धत बात्रयांका मन्नस्थल निर्देश ] हम फिटम कर दिया है। कुछ अर्थबोधक टिप्पण मम्पादक दाग लिएई। नाडापत्रीय निम भी कहीं कहीं मिल उन्हें 'ता. टिके माथ छपाया है। इस ग्रन्थमं निम्नलिखित परिशिष्ट लगाए गए है-१ तन्त्रार्थमनोंका अबाराद्यन ऋम, २ नावागत. शब्दोंकी भूची, तत्त्वार्थवत्तिक जनधन पाक्योंकी मुनी. या तिन्त अन्न और सन्यवर ५ तत्त्वार्थबृत्तिके विशेष शब्द, ६ ग्रन्थसंकेत विवरण ।। प्रस्तावनाम तस्व, तत्त्वाधिगगके उपाय और सम्यग्दन शीर्षकम जन आवाका गर जनदष्टिग देखनका प्रयत्न किया है। आशा है दमरी मांऋनिक पदार्थोके निरपण लिए नीनमागं गिर राकेगा। तस्वाधिगम के जगाय' प्रकरणमें स्यावाद और मनगंगीक गंबंध श्री रामलजी, मर राधा रणन. बलदेवजी उपाध्याय आदि वर्तमान दर्शनलेवकानी चान्न नान्गायकी आलोचना भी की गई।Page Navigation
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