Book Title: Tattvarthvrutti
Author(s): Jinmati Mata
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 6
________________ प्रस्तावना मार्गदर्शक :- अविवि श्री सुविधिसागर जी महाराज गुन पृथिवी काय, आप काय, तेज काय, बाथु काय, गुल, तुम और जीवन यह मामला दुस्खके योग्य नहीं है। यहां न हन्ता (भारनेवाला) है. न घातयिता (-हवन करनेवाला) न मुन वाला न सुनानेवाला न जाता न जायेीभीको किसीको प्राणस नहीं मारता मानी काय अलग साली जगह में गन्न | 7 22 यह मत अन्योन्यवाद या शास्वाद कहलाता था। यदि आप पूछे दि (५) संजय वेत्तिका मत था परलोक है, तो आपको बतलाऊँ कि परलोक हैं । में ऐसा भी नहीं रहना, बेसा की नहीं कहना मेरी तरहसे भी नहीं कहना में यह भी नहीं कहता कि 'यह नहीं है में यह भी नहीं कहता कि वह नहीं नहीं है। परलोक नहीं है । परलोक है भी और नहीं भी ० परलोक न हैं और न नहीं है। अयोनिद (-ऑप. पातिक) प्राणी है। आयोनिज प्राणी नहीं है, है भी और नहीं भी, न है और नहीं भरे काम केफ है, नहीं है, और न नहीं हैं। तथागत बने हैं। यदि मुझे ऐसा पूछें और में ऐसा ममता दिन रहते है और नहीं तो मैं ऐसा आपको कहूँ। मैं ऐसा भी नहीं कहता में वैसा भी नहीं कहना।' संजय स्पष्टतः संशयालु क्या घोर अनिश्चयवादी या आज्ञानिक था उसे तत्त्वकी प्रचलित चतुष्कोटियों से एकका भी निर्णय नहीं था। पालीपिठक में इसे 'अमराविशेपवाद' नाम दिया है। भले ही हमलोगों की समझ में मह विक्षेपवादी ही हो पर संजय अपने अनिश्चयमें निश्चित था । १ (६) बुद्ध अष्याकृतवादी थे। उनने इन दस वालोंको अव्याकृत बतलाया है। (१) लोक है ? (२) लोक अशाश्वत है ? (३) लोक अन्तवान् हं ? ( ४ ) लोक अनन्त है ? (५) वही जीव ही शरीर है ? (६) जोव अन्य और दारी र अन्म है १(७) मरनेके बाद तथागत रहते हैं ? (८) मरने के बाद नथागत नहीं रहते ? (९) मरने के बाद तथागत होते भी हैं नहीं भी होते ? (१०) मरनेके बाद तथागत नहीं होते, नहीं नहीं होते ? इन प्रश्नोंमें लोक आत्मा और परलोक या निर्वाण इन तीन मुख्य विवादग्रस्त पदार्थोंको बुद्धले अन्याकूल कहा। दीघनिकाय के पोट्वादसुन में इन्हीं प्रश्नको अव्याकृत कहकर 'अमेकांशिक कहा है। जो व्याकरणीय है उन्हें 'ऐकाशिक' अर्थात् एक सुनिश्चित रूपमें जिनका उत्तर हो सकता है. कहा है। जैसे दुख आर्यसत्य है ही? उसका उत्तर हो 'है ही' इस एक अंगरूपमें दिया जा सकता है। पर लोक आत्मा और निर्माणगंबंधी प्रश्न अनेकांशिक अर्थात् इनका उतरान इनमें किमी एकके द्वारा नहीं दिया जा सकता। कारण बुद्धने स्वयं बताया है कि यदि वही जीव दही शरीर कहते हैं तो उच्छेदवाद अर्थात् भौतिकवादका प्रसंग आता है जो बुद्धको इष्ट नहीं और यदि अन्य जीव और अन्य शरीर कहते हैं तो निरय आत्मवादका प्रसंग आता है जो मी बुद्धको इष्ट नहीं था। बुद्ध ने अश्नव्याकरण चार प्रकार का बताया है- (१) एकांश (है या नहीं एकमं) व्याकरण, प्रतिपृच्छाव्याकरणीय प्रश्न विभज्य व्याकरणीय प्रश्न और स्थापनीय प्रश् जिन प्रश्नोंको बुद्धवं अव्याकृत कहा है उन्हें अनेकाशिक भी कहा है अर्थात् उनका उत्तर एक है या नहीं में १"सरसतो खोको इतिपि, असस्तो छोको इतिपि जन्तवा लोको किंपि अनन्तवा लोकी इतिपि तं जीवंत सरीरं इतिषि, अजीव अम सरीर इतिथि होति तथागतो परम्परा इतिप होति न च होति च तथागत पम्मरणा इतिषि, होत न हो तो "ममिनि० चूत कतमे से पोप बना अनेकसिया मा देखिता पन्ना सरसतो ओको ति वा पोहबाद नया अ सिम्मो देखितो पातो तो लोको वि यो पोर मया अनेक "दीपनि पोर I

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