Book Title: Tattvarthsar
Author(s): Amrutchandracharya
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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ओळ ४
१०
१४ १५
टीप ४
अशुद्ध वस्तुतः तत्वार्थानः अध्यस्तं मतिज्ञानाभिदा हिताः अवस्पष्टार्थ पच्चामि
वस्तुनः तत्वार्थाः अध्यक्ष मतिज्ञानभिदा हि ताः अविस्पष्टार्थ पचामि
२१ २३
३५ ११ अधिकार २ रा
४७ ११
५१
चारिद्वे लब्धः अंतरभाव सूक्ष्योपशान्त क्षणक मनःपर्याप्ति पश्चत्य मसूरतिमुक्ते मेण यावादिष्यते
चारित्रे लब्धयः । अंतर्भाव सूक्ष्मोपशांत
क्षपक सह ६ पर्याप्ति असतात.
पश्यत्य मसूरातिमुक्ते मेव यावदिष्यते
पाटक
पाक
* * * * * * * * * * * * * * * * * *
१०८
११६
श्यतुभि वर्षाणि पस्योपम पल्योमाष्टभागे प्यसदशः वेदन्त वरहक ध्वन्तष्वरेत्र गाति
श्चतुर्भिः वर्षसहस्राणि पल्योपम पल्योपमाष्ट भागेष प्यसददशः वेदना वाहक ध्वन्तरेष्वत्र गति
१२१ १३४
१३५
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