Book Title: Tattvapradipika Nayanprasadini Tika Author(s): Chitsukhmuni, Pratyayaswarupmuni, Nirmaloddhavsinh Publisher: Nirmaloddhavsinh View full book textPage 2
________________ ॥ॐ लिखी गणेशायनमः॥ यन्नित्यनिश्वग्रहस्वमहिमाः मेयसभाचे महा मायावेश्वशाद्य वर्तनवि पायग्मतु | बौमुखैः॥ भावैस्तत्तदनेन विश्वममयैर्विध्वस्तभेदोडवे निनावधिबोध मोहजल धिवदेम ही पो मन्दः ॥ १ ॥ उनि भ्रमर सोहनिषद्यानिर्गच्छदच्छरु चिनिर्जितन्नन्द्रका निं ॥ हारोज्वला लि स्फटिकास कुं भमुद्राक्ष पुलककप्रणमामिवाणी ॥ ॥ अविरल विगलितमदजलविलुलित ल्पमनुलम्बः ॥ विपुलेक पोल फल को दलपतु लंबोदरोदुरितम् ॥ ३॥ यदिया धवलैर्विभर्निविषुचैः मर्यादिना पीडमुन्मी त्वको र काकुलावविश्वभरेयभृता ॥ घोरो ज्ञानटुन येकनिकर प्रोत्सारिविद्या नदी मूल नौ मिथुनी | न्द्रमन्वह महविद्यागिने गुरुम् ॥ ४ ॥ यत्पादपा विजः परागे देवि विश्जतमाधुः॥ स सिविडियनिःसुना गानान भान कशम म ॥॥॥ यसकाशात्यत्वादास कल विबुधैौ नेसली सोचिभनिशाना यहिये सर्वानीच जावनने वन्देवियागुरु मविरनं मानसं तीर्थ माम् ॥ ६ ॥ भूवि चित्रप्रदी कानय अशान नम श्रीमानसन यन प्रसादिनीटी का ॥७॥ दोधनमुज्वलगुणा अपियां मिथुन रुन्नतेः किमर्थचेहतिरस्कृतेः किं एस ॥ दोषोपि येनुगुणनामुपयाति भूयास्तेभ्योनमोहराननभु विज्जनेभ्यः ॥८॥ मारी निस्वप्रकरण स्थनि नरायपरिसमाशिपरिपन्धिहुनि ॥ हुPage Navigation
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