Book Title: Tattvapradipika Nayanprasadini Tika
Author(s): Chitsukhmuni, Pratyayaswarupmuni, Nirmaloddhavsinh
Publisher: Nirmaloddhavsinh
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चि.स. नायअनवस्थापानान् द्वितीयेनिरस्य द्वितीयद्वितीयंशकने सूख्यमात्र नन्विति नलक्षणसिद्धिरिनिलक्ष्यस्व टी. न रूपमाचन्ानय्यनडज्ञान वादिभिरचिता चन्मात्रागी का राज्ञेत्यर्थः ज्ञानाविषयाने सतीत्न्यन्त्रेय दिज्ञानविषयत्वं प्रतिषिध्यतेन किं वेदद्य वेज्ञान के मेव बानादासा धामभवस्य दर्शिननादित्याह अविनयानखेति द्दितीयनि किंवव्यवहारहेतुत्वं विशेषणम् पुलक्षणं वा नाद्यः मुक्रिमलयादावप्रान्नेर्नहितोय: उचल नि पिणगान रूपमान ान ान ान यासमिन लक्षण सिद्धिनीपिषणःस नकाशाच साधकानुमा नन्यज्ञानविषयत्वे नलक्षणस्यासंभवित्वात्न स्वाप्यविषयत्वे कथाभवत्यनुपपत्तेनापिरोत्रम: अविषयन स्यैवासंभवेन निरस्ताचाहिषयत्वशब्देनकर्मचा सायागुरुमतानुसारिणामान्यन्यति व्यानेचनस्य ग्राहक नया सिद्धस्या विषय त्विष्पपरोक्षनाया हैन रंगी कारान्नाप्पष्टमः प्राचीन बेधनि विषयत्वेति प्राभाकराणाम विदाश्रयतया सिद्धस्यान्मनोज्ञानाक मेवे ना परोक्ष (दोषानुषेगात् ॥ नास्तीत्यगी कारादतिव्यानिरित्यर्थः ईारवादिना नज्ज्ञा नाक मेन या परोपे जग निम्नमविषय संसर्गेन्च वेदोनिनोच सामिवेद्यसुखादाननि व्यातिरित्यपिव्यं मानी नदोषानुषंगादिनि व्यवहारविषयचन्यमुक्रिदशायाम से भवा
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