Book Title: Tamso ma Jyotirgamayo
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 4
________________ प्रकाशकीय जैन धर्म के मूर्धन्य मनीषियों ने आचार्य के लिए कहा है दीव समा आयरिया । आचार्य 'दीप' के समान हैं। प्राकृत भाषा में 'दीव' शब्द के दो अर्थ हैं-"द्वीप" तथा "दीप"। आचार्य में दोनों ही गुण हैं। वे अथाह भवसमुद्र के बीच धर्म की शरणस्थली रूप द्वीप भी हैं, तो अज्ञान मोह के अन्धकार में भटकते प्राणियों के लिए मोक्षमार्ग उद्योतित करने वाले ज्ञान-दीप भी हैं। ज्ञान-दीप को प्रज्वलित करना, आचार्य, उपाचार्य और उपाध्याय तीनों का ही विशेष गुण धर्म है। श्रमण संघ के महामहिम आचार्य श्री आनन्द ऋषिजी महाराज स्वयं साक्षात् ज्ञानमूर्ति हैं और उनकी उत्कट प्रेरणा रहती है कि संघ एवं समाज में ज्ञान की ज्योति सतत जगमगाती रहे । आपश्री की प्रेरणा एवं भावना के अनुसार ही श्रमण संघ के उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी महाराज अध्यात्म, तत्वज्ञान, धर्म एवं दर्शन सम्बन्धी महत्वपूर्ण साहित्य की सर्जना में लीन है। आपश्री ने साहित्य की प्रत्येक विधा में अत्यन्त उपयोगी, पठनीय और विद्वत्तापूर्ण साहित्य का निर्माण कर श्री स्थानकवासी जैन श्रमण संघ की गरिमा में चार चाँद लगाये हैं। तथा जैन साहित्य की श्रीवृद्धि भी की है। आप चिन्तनशील, बहुश्रुत लेखक हैं। मधुरवक्ता और सहज निर्मल हृदय के स्नेहशील हैं । पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी महाराज की वृद्ध अवस्था एवं शारीरिक अस्वस्थता के कारण गुरुदेव का सेवा आदि में अत्यधिक व्यस्त रहते हए भी आपश्री निरंतर पठन, लेखन में निमग्न रहते हैं। "तमसो मा ज्योतिर्गमय' अध्यात्म प्रधान तत्व चिन्तन युक्त सुन्दर निबन्धों का संकलन है । हिंसा, कर्म, महामन्त्र नवकार, स्वाध्याय, साहस आदि विविध विषयों पर १५ निबन्धों का यह बहुरगी गुलदस्ता विचार प्रधान सामग्री से युक्त है । आशा है चिन्तन प्रधान साहित्य के पाठक इससे विशेष लाभ उठायेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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