Book Title: Tamso ma Jyotirgamayo
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 15
________________ २ तमसो मा ज्योतिर्गमय होता, उसके पीछे विवेक का आलोक जगमगाता है । उसका सबसे बड़ा कार्य है -अनादि काल की मुर्छा को तोड़ना; मोह को भंग कर मोहन के दर्शन करना । मन्त्र मुर्छा नष्ट करने का सर्वोत्तम उपाय है। मूर्छा ऐसा आध्यात्मिक रोग है, जो सहसा शांत नहीं होता; उसके लिए निरन्तर मंत्र जाप की आवश्यकता होती है । यह महामन्त्र साधक के अन्तर्मानस में यह भावना पैदा करता है कि मैं शरीर नहीं हूँ, शरीर से परे हूँ। वह भेदविज्ञान पैदा करता है । मंत्र हृदय की आँख है । मंत्र वह शक्ति है-जो आसक्ति को नष्ट कर अनासक्ति पैदा करती है । नमस्कार मंत्र का उपयोग जो साधक आसक्ति के लिए करते हैं वे लक्ष्यभ्रष्ट हैं। लक्ष्यभ्रष्ट तीर का कोई उपयोग नहीं होता, वैसे ही लक्ष्यभ्रष्ट मंत्र का कोई उपयोग नहीं है । मंत्र छोटा होता है। वह ग्रन्थ की तरह बड़ा नहीं होता। होरा छोटा होता है, चट्टान की तरह बड़ा नहीं होता, पर बड़ी-बड़ी चट्टानों को वह काट देता है । अंकुश छोटा होता है, किन्तु मदोन्मत्त गजराज को अधीन कर लेता है। बीज नन्हा होता है, पर वह बीज विराट् वृक्ष का रूप धारण कर लेता है । वैसे ही नमोक्कार मंत्र में जो अक्षर हैं-वे भी बीज की तरह हैं। नमोक्कार मंत्र में ३५ अक्षर हैं। ३ में ५ जोड़ने पर ८ होते हैं। जैन दृष्टि से कर्म आठ हैं । इस महामन्त्र की साधना से आठों कर्मों की निर्जरा होती है। ३-सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यक चारित्र तथा मनो गुप्ति, वचन गुप्ति और काय गुप्ति । ५-पंच महाव्रत और पंच समिति का प्रतीक है। जब नमोक्कार मंत्र के साथ रत्नत्रय व महाव्रत का सूमेल होता है या अष्ट प्रवचन माता की साधना भी साथ चलती है तो उस साधना में अभिनव ज्योति पैदा हो जाती है। इस प्रकार यह महामन्त्र मन का त्राण करता है । अशुभ विचारों के प्रभाव से मन को मुक्त करता है। _ नमोक्कार मंत्र हमारे प्रसुप्त चित्त को जागृत करता है। यह मंत्र शक्ति-जागरण का अग्रदत है। इस मंत्र के जाप से इन्द्रियों की वल्गा हाथ में आती है, जिससे सहज ही इन्द्रिय-निग्रह हो जाता है । मन्त्र एक ऐसी छैनी है जो विकारों की परतों को काटती है । जब विकार पूर्ण रूप से कट जाते हैं तब आत्मा का शुद्ध स्वरूप प्रकट हो जाता है । महामन्त्र की जपसाधना से साधक अन्तर्मुखी बनता है, पर जप की साधना विधिपूर्वक होनी चाहिए । विधि पूर्वक किया गया कार्य ही सफल होता है । डॉक्टर रुग्ण व्यक्ति का ऑपरेशन विधिपूर्वक नहीं करता है, तो रुग्ण व्यक्ति के प्राण संकट में पड़ जाते हैं । बिना विधि के जड़ मशीनें भी नहीं चलतीं। सारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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