Book Title: Tali Ek Hath Se Bajti Rahi
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 2
________________ सम्पादकीय भगवान पार्श्वनाथ जन जन के श्रद्धाभाजन हैं। उनका वर्तमान तथा पूर्व भवों का जीवन अलौकिक घटनाओं से भरा हुआ है। मरुभूमि के प्रति कमठ का एक पक्षीय वैर देख कर आंखों के सामने सौजन्य और दौर्जन्य का सच्चा चित्र उपस्थित हो जाता है। प्रशमगुण के अवतार मरुभूति के जीव को जो आगे चल कर पार्श्वनाथ तीर्थकर बना है। कितना कष्ट दिया? यह देख कर हृदय में कमछ के जीव की दुष्टता और मरुभूमि के जीव की सहिष्णुता का दृष्य सामने आ जाता है। कमठ के जीव ने पूर्वभव तथा वर्तमान भव में भी उसने कितना भयंकर उपसर्ग उन पर किया था। यह पढ़ कर शरीर रोमाञ्चित हो जाता है। अन्त में धरणेन्द्र और पद्यावती के द्वारा जो कि कुमार पार्श्वनाथ के मुखार विन्द से सदुपदेश सुनकर नाग नागनी की पर्याय छोड़ देव-देवी हुए थे। उनके कारण भयंकर उपसर्ग का निवारण हुआ और मुनिराज पार्श्वनाथ केवल ज्ञान प्राप्त कर भगवान बन गये। कमठ का जीव अपने कुकृत्य का प्रायश्चित कर सदा के लिए निबैर हो गया। साहित्य सेवा में सकल कीर्ति का महान योगदान रहा उन्होंने साधु जीवन के प्रत्येक क्षण का उपयोग किया। प्रस्तुत कृति पार्श्वनाथ पुराण के आधार पर तैयार की गई है। जैन चित्र कथा के माध्यम से शिक्षाप्रद कहानियां प्रकाशित हो कर आधुनिक पीढ़ी के जीवन निर्माण में सहयोग प्रदान करेंगी। धर्मचंद शास्त्री सम्पादक :- धर्मचंद शास्त्री लेखक : ताली एक हाथ से बजती रही :- डा. मूलचंद जी जैन मु. नगर चित्रकार :- बेनसिंह प्रकाशक :- आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थ माला, गोधा सदन अलसी सर हाऊस संसार चंद रोड जयपुर राजस्थान मुद्रक : सैनानी ऑफसेट फोन : 2282885, निवास 2272796 मूल्य 12/

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