Book Title: Taittiriya Samhita Part 01 Author(s): A Mahadev Shastri, K Rangacharya Publisher: Government of Mysore View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरिः ॐ तैत्तिरी य संहिता भास्करीयभाष्ययुक्ता. प्रथमः काण्डः. प्रथमः प्रश्नः हरिः ओम्॥'इषे त्वोर्जे त्या वायवस्स्थोपायवस्स्थ भट्टभास्करीयं ज्ञानयज्ञाख्यम् तैत्तिरी य सं हि ता आ प्य म् . - ----- ईशानस्सर्वविद्यानां भूतानामीश्वरः परः । पुनातु सर्वदा चास्मान् शब्दब्रह्ममयश्शिवः ॥ अत्राहु: यदधीतमविज्ञातं निगदेनैव शब्द्यते । अननाविव शुष्कैधो न तज्ज्वलति कहिंचित् ॥ इति. किञ्च, स्थाणुरयं भारहारः किलाभूदधीत्य वेदं न विजानाति योऽर्थम् । योऽर्थज्ञ इत्सकलं भद्रमभुते स नाकमेति ज्ञानविधूतपाप्मा ॥ इति. *म-वेदवेद्यश्शान्तरूपो देवो माहेश्वरः परः । अग्न्यादिदेवतारूपो जगतामीश्वरः परः॥ तिं-युष्मान, निरु. १-६-२, For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 402