Book Title: Syadvada aur Saptabhanginay Author(s): Bhikhariram Yadav Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 7
________________ ( ४ ) अनेकान्तता का द्योतक और विवक्षित अर्थ का एक विशेषण है।' इसी प्रकार पंचास्तिकाय की टीका में आचार्य अमृतचन्द्र भी स्यात् शब्द के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं कि 'स्यात्' एकान्तता का निषेधक, अनेकान्तता का प्रतिपादक तथा कथंचित् अर्थ का द्योतक एक निपात शब्द है । मल्लिषेण ने भी स्याद्वादमंजरी में स्यात् शब्द को अनेकान्तता का द्योतक एक अव्यय माना है । इस प्रकार यह बात स्पष्ट हो जाती है कि जैन विचारकों की दृष्टि में स्यात् शब्द संशयपरक न होकर अनेकान्तिक किन्तु निश्चयात्मक अर्थ का द्योतक है । मात्र इतना ही नहीं जैन दार्शनिक इस सम्बन्ध में भी सजग थे कि आलोचक था जनसाधारण द्वारा स्यात् शब्द का संशयपरक अर्थ ग्रहण किया जा सकता है, इसलिए उन्होंने स्यात् शब्द के साथ " एव" शब्द के प्रयोग की योजना भी की है, जैसे "स्यादस्त्येव घटः" अर्थात् किसी अपेक्षा से यह घड़ा ही है । यह स्पष्ट है कि “एव" शब्द निश्चयात्मकता का द्योतक है । "स्यात्" तथा " एव" शब्दों का एक साथ प्रयोग श्रोता की संशयात्मकता को समाप्त कर उसे सापेक्षिक किन्तु निश्चित ज्ञान प्रदान करता है। वस्तुतः इस प्रयोग में “एव” शब्द 'स्यात्' शब्द की अनिश्चितता को समाप्त कर देता है और “स्यात्” शब्द “एव” शब्द की निरपेक्षता एवं एकान्तता को समाप्त कर देता है और इस प्रकार वे दोनों मिलकर कथित वस्तु-धर्म की सीमा नियत करते हुए सापेक्ष किन्तु निश्चित ज्ञान प्रस्तुत करते हैं । अतः स्याद्वाद को संशयवाद या सम्भावनावाद नहीं कहा जा सकता है । “वाद” शब्द का अर्थ कथनविधि है । इसप्रकार स्याद्वाद सापेक्षिक कथन पद्धति या सापेक्षिक निर्णय पद्धति का सूचक है । वह एक ऐसा सिद्धान्त है, जो वस्तु तत्त्व का विविध पहलुओं या विविध आयामों से विश्लेषण करता है और अपने उन विश्लेषित विविध निर्णयों को इस १. वाक्येष्वनेकांतद्योती गम्य प्रति विशेषक | स्यान्निपातोऽर्थयोगित्वात्तव केवलिनामपि ॥ -आप्तमोमांसा १०३ | २. सर्वथात्व निषेधकोऽनेकांतता द्योतकः कथंचिदर्थे स्यात् शब्दो निपातः । ३. स्यादित्यव्ययमनेकांतद्योतकं । - स्याद्वादमंजरी Jain Education International For Private & Personal Use Only - पंचास्तिकाय टोका www.jainelibrary.orgPage Navigation
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