Book Title: Suyagadanga Suttam Part 01
Author(s): Punyavijay
Publisher: Prakrit Granth Parishad
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मूलकरणं सरीराणि पंच तिसु कण्ण-खंधमादीयं ।
दविंदियाणि परिणामियाणि विस-ओसधादीहिं ॥६॥ मूलकरणं सरीराणि पंच० गाधा । ओरालियादीणि पंच सरीराणि मूलकरणं । उत्तरकरणं जं णिष्फण्णातो | णिप्फज्जति । तं च एतेसिं चेव ओरालिय-वेउव्विया-ऽऽहारयाणं तिण्हं उत्तरकरणं, सेसाणं णत्थि । ओरालियादीणं तिण्हं मूलकरणं अटुंगाणि, अंगोवंगाणि उवंगाणि य उत्तरकरणं । ताणि य तं जधा
सीसं उरो य उदरं पट्टी बाहा य दो य ऊरूओ। एते अटुंगा खलु सेसाणि भवे उर्वगाणि ॥ १॥ होति उबंगा अंगुलि कण्णा णासा य पैंजणणं चेव । णह केस दंत मंसू अंगोवंगेवमादीणि ॥ २ ॥
अधवा ओरालियस्सेवेगस्स इमं उत्तरकरणं-दंतरागो कण्णवद्धणं णह-केसरागो खधं वायामादीहिं पीणितं करेति, एतं | ओरालियस्स । वेउव्विए उत्तरकरणं उत्तरवेउब्वियं रूवं विउव्वति।आधारए णत्थि एताणि, इमं वा-आहारगस्स गमणादीणि।
अधवा पंचेंदियाणि (दविदियाणि) सोइंदियादीणि मूलकरणं, सोइंदियं कलंबुगापुप्फसंठितं एवं मूलकरणं, उत्तरकरणं तु कण्णवेह-वालाईकरणादि । अथवा यदुपहतस्योपकरणस्य तदुपकारित्वाद् य उपक्रमः क्रियते विसेण ओसधेण वा । एवं सेसाणं पि। यावन्तीन्द्रियाणि सन्ताणि शोभानिमित्तं अर्थोपलब्धिनिमित्तं वा उत्तरगुणतो निवर्तयति । शोभा वर्ण-स्कन्धादि, अर्थोप
१विविहोसहाईसु ख १॥ २ इयं गाथा अंगोवंगाई सेसाई इति चतुर्थचरणपाठभेदेन उत्तराध्ययननिर्युक्तौ १५२ तमी १८९
तमी च वर्तते ॥ ३"होति उवंगा कण्णा णासऽच्छी हत्थ जंघ पाया य । णह केस मंस अंगुलि ओट्ठा खलु अंगुवंगाई॥" उत्त० पाइ० पत्र २सूयगड
II १४३-२॥ ४ पययणं चूसप्र०॥ ५ आहारके इत्यर्थः ॥ ६ सतानि शोभा पु० सं०॥
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