Book Title: Suyagadanga Suttam Part 01
Author(s): Punyavijay
Publisher: Prakrit Granth Parishad
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पढमो
णिज्जुत्तिचुण्णिजयं सूयगडंग
सुत्तं
ko
लब्धिस्तु बाधिर्य-तिमिर-प्रसुप्तयादीनामुपक्रमतः पुनः स्वस्थकरणम् । अथवा दग्विन्दियाणि परिणामियाणि विसेण अगदेण वा वर्ण-उपयोगघाताय भवन्ति, अथवा विसमेव विधिणा उपजुज्जमाणं रसायणीभवति । औषधप्रामाश्च ये शरीरोपकारिणः सुयखंधो पथ्यभोजनक्रियाविशेषाः सर्व एव वाऽऽहारः, अथवा स्वरभेद-वर्णभेदकरणानि ॥ ६॥ इदानीं एतेसिं चेव पंचण्हं सरीराणं तिविधं करणं भवति । तं जधा-संघायणाकरणं परिसाडणाकरणं संघायपरि
१ समयज्झसाडणाकरणं । तेया-कम्माणं संघातणवजं दुविधं करणं। एताणि तिण्णि वि करणाणि कालतो मग्गिजंति-तत्थोरालियसंघात- PAL यणं करणं एगसमयियं जं पढमसमयोववण्णगस्स, जधा तेल्ले ओगाहिमओ छूढो तप्पढमताए आदियति, सेससमएसु सिहं पढमुद्देसो गिण्हइ वि मुंचइ वि, एवं जीवो वि उववजंतो पढमे समए एगंतसो गेहति ओरालियसरीरपाउम्गाणि दव्वाणि, ण पुण किंचि वि मुयति । परिसाडणा वि समओ चेव, सो मरणकालसमए एगंतसो चेव मुंचति । मज्झिमे काले किंचि गेण्हति किंचि मुंचति, सो जहण्णेणं खुड्डागभवम्गहणं तिसमयूणं, उक्कोसेणं तिण्णि पलितोवमाणि समयूणाणि । किह पुण खुट्टागभवम्गहणं तिसमयूणं भवति ?, उच्यते
दो विग्गहम्मि समया समयो संघातणाए तेहूणं । खुड्डागभवम्गहणं सव्वजहण्णो ठितीकालो ॥१॥ उक्कोसो समयूणो जो सो संघातणासमयहीणो । किह ण दुसमयविहीणो साडणसमएऽवणीतम्मि? ॥२॥ भण्णति भवचरिमम्मि वि समए संघाय-साडणा चेव । परभवपढमे साडणमतो तदूणो ण कालो त्ति ॥ ३ ॥
१°षणा ठिती कालो पु० सं०॥
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