Book Title: Suvarnabhumi me Kalakacharya
Author(s): Umakant P Shah
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras

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Page 11
________________ मुवर्णभूमि में कालकाचार्य ऐतिहासिक व्यक्ति थे, उनकी रचनायें वराहमिहिर ने देखी थीं और ई० स० की ६ वीं शताब्दी में उत्पलभट्ट के सामने भी कालक की रचनायें या इनका अंश मौजूद था। यह कालक वराहमिहिर के वृद्धसमकालीन या पूर्ववर्ती होंगे। अनुयोग के चार विभाग करने वाले आर्यरक्षित१५ से आर्य कालक पूर्ववर्ती होने चाहिये। आर्य रक्षित का समय ईसा की प्रथम शताब्दी के अन्त में माना जाता है। अतः कालकाचार्य वराहमिहिर के पूर्ववर्ती हैं। वराहमिहिर का समय शक संवत् ४२७ या ई० स० ५०५ अासपास माना गया है। इस समय के आसपास कालक शकों को भारत में लाये ऐसा हो नहीं सकता, क्योंकि ईसा की पहली सदी में भारत में शक जुरूर बसे हुए थे और जगह जगह पर उनका शासन भी था। अतः आर्य कालक वराहमिहिर के पूर्ववर्ती ही थे। हम देख चुके हैं कि अनुयोगकार निमित्तज्ञ कालक और गर्दभिल्ल-विनाशक निमित्तज्ञ कालक एक ही हैं और वही सुवर्णभूमि में गये थे। डॉ० आर० सी० मजुमदार लिखते हैं : “An Annamite text gives some particulars of an Indian named Khauda-la. He was born in a Brāhmana family of Western India and was well-versed in magical art. He went to Tonkin by sea, probably about the same time as Jivaka..........He lived in caves or under trees, and was also known as Ca-la-cha-la (Kalacharya-black preceptor ?)"17 - इसका मतलब यह है कि अनाम-चम्पा के किसी ग्रन्थ में लिखा है कि पश्चिमी भारत की ब्राह्मण जाति का कोई खऊद-ल नामक व्यक्ति वहाँ गया था और वहाँसे दरियाई रास्ते टोन्किन (दक्षिण चीन) गय था। यह व्यक्ति जाद-गुह्यविद्या-मन्त्रविद्या में निपुण था। पेड़ों कि छाँय में या तो गुफाओं में वह पुरुष निवास करता था और उसको कालाचार्य कहते थे। __डॉ० मजुमदार का कहना है कि यह कालाचार्य शायद उसी समय में अनाम और टोन्किन गये जिस समय बौद्ध साधु जीवक गया था। जीवक या मारजीवक ई० स० २९० अासपास टोन्किन में था।८ इसी अनाम की परम्पग के विषय में डॉ० पी० सी० बागची से विशेष पृच्छा करने से इन्होंने मुझे लिखा है "Khaudala is not mentioned in any of the authentic Chinese sources which speak of the other three Buddhist monks Mārajīvaka, SanghaVarman and Kalyānaruci who were in Tonkin during the 3rd century A.D. But he is referred to for the first time (loc. cit. P. 217) in an Annamese book-Cho Chau Phap Van Phat Ban hành ngi tue of the 14th century. The text says “Towards the end of the reign of Ling Han (168-188 A.D.) Jivaka was travelling. Khau-da-la (Kiu-to-lo = Ksudra) arrived about १५. देविद वंदिएहिं, महाणुभावेहिं रक्खिअ अज्जेहिं । जुगमासज्ज विहत्तो, अणुओगो ता कहो चउहा ॥ -आवश्यक नियुक्ति, गाथा ७७४ १६. वराहमिहिर का समय शक सं० ३२७ या ई० स० ४०५ आसपास है ऐसा एक मत के लिए देखो, इन्डिअन कल्चर, वॉल्युम ६, पृ० १६१-२०४. १७. एज ऑफ इम्पीरिअल युनिटि, पृ० ६५०. इटालिक्स मेरे है.. १८.. वहीपृ०६५०. और देखिये, Le Bouddhisme en Annam, Bulletin decole Francaise d'Extreme-Orient, Vol. XXXII. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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