Book Title: Sutra Samvedana Part 04
Author(s): Prashamitashreeji
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 8
________________ सूत्र संवेदना संबंधी स्वर्गस्थ गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमद् विजय हेमभूषणसूरीश्वरजी म. सा. का अभिप्राय नारायणधाम, वि. सं. २०५६, पो. व. ४ विनयादिगुणयुक्त सा. श्री प्रशमिताश्रीजी योग जिज्ञा से प्रत्यक्ष में पहले बात हुई, उसके बाद उसने ‘सूत्र संवेदना' का प्रुफ पढ़ने के लिए भेजा। उसे विहार में पूरा पढ़ लिया। सच कहता हूँ - पढ़ने से मेरी आत्मा को तो अवश्य खूब आनंद हुआ। ऐसा आनंद एवं उस वक्त हुई संवेदनाएँ अगर स्थिर बनें, क्रिया के समय सतत उपस्थित रहें तो क्रिया-अनुष्ठान भावानुष्ठान बने बिना न रहे। निश्चित रूप से बहुत सुंदर पुरुषार्थ किया है। ऐसी संवेदना पाँचों प्रतिक्रमणों में उपयोगी सभी ही सूत्रों की तैयार हो तो योग्य जीवों के लिए ज़रूर खूब लाभदायक बनेगी। मैंने जिज्ञा को प्रेरणा दी है लेकिन इसके मूल में आप हो इसलिए आपको भी बताता हूँ। मेरी दृष्टि में यह सूत्र-संवेदना प्रत्येक साधु, साध्विओं - खास करके नए साधु-साध्वियों को विशेष पढ़नी चाहिए। रत्नत्रयी की आराधना में अविरत रहो, यही शुभाभिलाषा। लि. हेमभूषण सू. की अनुवंदना

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