________________
इस अनुवाद के कारण मुझे जो व्यक्तिगत लाभ हुआ वह वचनातीत है। 'वंदित्तु-सूत्र' से संबंधित अन्य पुस्तकों को पढ़ने के बाद ऐसा लगा कि यह प्रयास पाठकों को वंदित्तु-सूत्र की गहराइयों, बारीकियों से परिचय करवा सकेगा जैसे कि प्रशस्त, अप्रशस्त कषाय, स्वरूप हिंसा, हेतु हिंसा और अनुबंध हिंसा का सराहनीय विवेचन एवं श्रमण तथा श्रावक के बीच हिंसा के परिणामों में धरती-आसमान का अंतर है, कहाँ २० वसा अहिंसा, कहाँ १.२५ वसा अहिंसा। इसके अतिरिक्त संरंभ, समारंभ, आरंभ का अन्तर एवं अतिक्रम, व्यतिक्रम,
अतिचार का सुन्दर वर्णन। नमन की अभिव्यक्ति एवं प्रतिक्रमण में विभाव से स्वभाव में लौट आने की प्रवृत्ति, सम्यग्दृष्टि जीव की महिमा, आलोचना, निंदा, गर्हा, दुगंछा का महात्म्य एवं हर गाथा के बाद उसका सारांश, श्रावक को संवेदनशील बना देता है।
प्रतिक्रमण के हर पहलू का विशुद्ध वर्णन करती हुई यह शिक्षाप्रद पुस्तक सब पाठकों के लिए कल्याणकारी सिद्ध होगी एवं ऐसे कार्यों के सुअवसर पुनः पुनः मिलते रहें, ऐसी मनोकामना सहित, प. पू. गुरुवर्या प्रशमिताश्रीजी के चरणकमलों में कोटि-कोटि वंदन।
- डॉ. ज्ञान जैन बी.टेक., एम.ए., पी.एचडी.