Book Title: Sutra Samvedana Part 04 Author(s): Prashamitashreeji Publisher: Sanmarg Prakashan View full book textPage 6
________________ अनुवादक की अनुभूति 'वंदित्तु सूत्र' या 'सूत्र संवेदना-४' ग्रंथ का अनुवाद करना मेरा सौभाग्य रहा है। प. पू. गुरुवर्या हेमप्रभाश्रीजी एवं उनकी अन्तेवासी शिष्या पू. साध्वी विनीतप्रज्ञाश्रीजी दोनों ही आज इस संसार में नहीं हैं। लेकिन ना रहते हुए भी उनकी दिव्यात्मा आज भी विद्यमान है। गुरुवर्या हेमप्रभाश्रीजी की छत्र-छाया में पल्लवित पू. विनीतप्रज्ञाश्रीजी सौम्यता, शांत स्वभाव, प्रज्ञा संपन्नता एवं गुरु-समर्पण की अद्वितीय प्रतीक थीं। अपनी आत्मीयता से उन्होंने बहुतों को प्रभावित, परिणमित किया। उनकी ये हार्दिक इच्छा थी कि सूत्र संवेदना ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद किया जाए, ताकि पाठक वंदित्तु सूत्र का अर्थ, भावार्थ सही रूप से समझकर, प्रतिक्रमण की महत्ता को जीवनोपयोगी बना सकें। प्रशांत, गांभीर्य-युक्त प. पू. गुरुवर्या प्रशमिताश्रीजी का वात्सल्यपूर्ण, स्नेहयुक्त आशीर्वाद एवं प्रबुद्ध सहयोग इस अनुवाद को आगे बढ़ाने में सहायक बना। पदार्थ के सम्यग्ज्ञानपूर्वक अनुवाद करने का ये प्रयास उनके उपकार के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन का द्योतक है। प्रत्येक शब्द, पद के यथार्थ उपयोग, विषय के व्यापक विवेचन, संतुलित प्रस्तुति में उनका अमूल्य सहयोग रहा है। आपश्री सदैव कहती रहीं कि हम सतत जागृत बने रहें ताकि यह प्रस्तुति किसी भी तरह के गुमराह का आधार न बन जाए। इस प्रयास में चेन्नई के श्री शैलेष भाई मेहता एवं मेरे लघु भ्राता श्री अशोक जैन का अमूल्य योगदान रहा है। वे धन्यवाद के पात्र हैं।Page Navigation
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