Book Title: Sursundari Chariyam
Author(s): Dhaneshwarmuni
Publisher: 

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ललिए व निठुरे वा कव्वे दोसो खलेहिं घेत्तयो / उद्यमुहाओ अहवा नीहरइ न जीरयं कहवि // 22 // दुजणसहाए पडियं निम्मलकव्वं |पि लहइ न पइटुं / जलबिंदुन्य सुतत्ते आयसभाणम्मि पक्खित्तो // 23 // आसज दुञ्जणं कविजणस्स अब्भत्थणा तओ विहला / न | हु सक्कररससित्तोवि चयइ कडुयत्तणं निंबो॥२४॥ अहवा कहापबंधो कीरइ किं दुजणाण संकाए ? / ज़्याभएण पैरिहणविमोयणं हंदि ! नहु जुत्तं // 25 // दुजणअसंमयं पि हु कुणइ कवी कव्वमेत्थ किमजुत्तं ? / उलुयाणमभासंतोवि दिणयरो किं न उग्गमइ ? // 26 // अपत्थिओवि सुयणो कईण कव्वे गुणे पयासेइ / धवलेइ जयं सयलं सभावओ चेव निसिनाहो // 27 // निंदाकारिजणस्स वि दोसaeil ग्गाही न सजणो कहवि / कुणइ सुयंधं वासि तेच्छिजंतो वि मलयरुहो // 28 // अनं च / हवइ हु विरूवयंपि हु कव्वं सुयणाण संगमे लटुं। सिप्पिंपुडम्मि पविटु जलंपि मुत्ताहलं होई // 29 // अब्भत्थणारिहा जं सुयणा तो ते उ पत्थिमो इहि / एगग्गमणा होउं साहिति निसामेह // 30 // घोरे अणोरपारे संसारे जोणिलक्खपउर म्मि। अइदुलहं लघृणं मणुयत्तं भवियलोएण // 31 // देविंदचंदनागिंदविंदमणुइंदवंदियजिणेहिं / वञ्जरिए उज्जमिउं जुत्तं धम्मम्मि Sel सुद्धम्मि // 32 // सो अंतरारिविजए रागद्दोसा य अंतरा सत्तू / तविजए चिय सोक्खं तेहिं जियाणं पुणो दुक्खं // 33 // ___ एवं च ठिए / रागद्दोसाणुगया जीवा पावेंति विविहदुक्खाई। तम्हा तबिजए च्चिय विबुहेहिं होइ जइयव्वं // 34|| एयत्थसाह 1 निस्सरति / 2 भाण-भाजनम् / 3 परिहण परिधान=वस्त्रम् / 4 जयं जगत् / 5 तथा वास्या छिद्यमानः / 6 लटुं श्रेष्ठम् / 7 शुक्तिपुटे / 8 कथ्यमानाम् / 9 अण=नास्ति उरं-आरम्भः पारश्चान्तो यस्य तस्मिन्चनाद्यनन्ते इत्यर्थः / 1. मणुइंदा-मनुजेन्द्राः / 11 वजरिए कथिते। 12 सः शुद्धधर्मः। 13 दोसो द्वेषः / For Private and Personal Use Only

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