Book Title: Sursundari Chariyam
Author(s): Dhaneshwarmuni
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassaqarsuri Gyanmandir 8HER** * | दुमाणं बहुदेसाणं पहाणयरो // 48 // धनसमिद्धिलपामररासयसंसद्दपूरियदियंतो / अविकरहमहिसरासहनाणाविहगोहणाइनो // 49 // पइदियहवहंताणेयसारणीविसररेहिरुजाणो। पुरनगरगामपउरो बहुरिद्धिसमिद्धसयलजणो॥५०॥ निच्च पमुइयलोओ नाणाविहउच्छ| वेहिं अविरहिओ। भयडमररहियगामो कुरुत्ति नामेण वरदेसो // 51 // चतुभिः कलापकम् // ___अविय / अणवस्यवहंताणेयवणियसत्थोहवैसिमसयलपहो / जत्थ न नजइ पहि पहिं अडविवसिठाणयविसेसो // 52 // अन्नं च का तम्मि देसे गुणाण भवणम्मि एयमच्छरियं / सोअरहिओवि जं सुणइ जणवओ लोयभणियाई // 53 // अविय / जत्थ य गाममहल्ला कररहिया धम्मवजिया मुणिणो। देसस्स तस्स संवण्णणम्मि को उजम कुणइ 1 // 54 // तत्थवि य अस्थि वित्थिन्नजलहिवलयाणुकारिपरिहाए / परपुरिसालंघाए परिक्खित्तं भंमिरमयराए // 55 // पडिवक्खभयुप्पायणविसालसालेण. परिगयं रम्मं / रमणीयमगरतोरणगोउरदारेहिं परिकिन्न // 56 // अइनीलबहलउववणविरायमाणावसाणभागेहिं / मत्तालंबगवक्खयजु: Jok| एहिं वरचित्तजुत्तेहिं // 57 / / नाणाभूमिजुएहिं पासाएहिं तुसारधवलेहिं / तन्नयरवासिजणजसथूहेहिव्व निच्चमइरम्मं // 58 // तह अबBारावरदेसागएण तन्नयरवासिणा चेव / वणियकलानिउणेणं पइदियहं वणियलोएण // 59 // किंजंतवणिज्जेहिं विरायमाणं अणेगहड्वेहिं. परिपूरिएहिं अंतो बहुमुल्लकियाणगसएहिं // 60 // उत्तुंगमगरतोरणपवणुधुयधवलधेयवडड्डेहिं / सुंदरदेवउलेहिं उक्सोहियसुंदरपएस 1 गोधनाकीर्णः / 2 रेहा राजनं शोभा साऽस्ति येषां रेहिराणि / 3 वसिमा वासवान् / 4 आश्चर्यम् / 5 सोओ=श्रोतः श्रोत्रम् , शोकश्च / 6 महल्लो वृद्धो निवहश्च प्रथमेऽथें विरोधः, कर(हस्त)रहितानां महत्त्वबाधात् ; द्वितीयेऽर्थे परिहारः, सर्वग्रामाणां कर(राजदेयभाग)वर्जितत्वात् / 7 धर्मः पुण्यं, धनुश्च / और 8 भमिरा भ्रमवन्तो मकरा यस्यां तया / 9 मत्तालाबः प्राङ्गणावरणम् / 1. थूहो-प्रासादशिखरं / 11 क्रीयमाणवाणिज्यैः / 12 वजपटाडधैः / *48- *6* For Private and Personal Use Only

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