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जुलाई-२००७
वाचकोत्तंस-श्रीज्ञानप्रमोदगणि-सन्दृब्ध आदिनाथ-पार्श्वनाथ-स्तोत्र
म० विनयसागर खरतरगच्छ की १० शाखाएँ और ४ उपशाखाएँ हैं । दूसरी उपशाखा श्री सागरचन्द्रसूरि उपशाखा कहलाती है । सागरचन्द्रसूरि का समय १५वीं शती है । जैसलमेर नरेश राजा लक्ष्मणदेव इनके बड़े प्रशंसक और भक्त थे । जिनभद्रसूरि को आचार्य बनाकर पट्टधर घोषित करने वाले भी यही थे । इन्हीं सागरचन्द्रसूरि की परम्परा में वाचक रनधीर के शिष्य वाचक ज्ञानप्रमोदगणि हुए हैं। खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास पृष्ठ ३३७ के अनुसार इनकी परम्परा इस प्रकार है :
श्री सागरचन्द्रसूरि
उ. रत्नकीर्ति
धर्मरत्नसूरि वा. पुण्यसमुद्र वा. दयाधर्म
समयभक्त
पुण्यनन्दि
वा. शिवधर्म
वा. हर्षहंस
वा. रत्नधीर
वा. ज्ञानप्रमोद
क्षमाप्रमोद .
विद्याकलश उ. विशालकीर्ति वा. गुणनन्दन
'धीर' दीक्षानन्दी को देखते हुए वा० रनधीर की दीक्षा श्रीजिनमाणिक्यसूरिजी के कर कमलों से संवत् १६१२ के पूर्व ही हुई थी । ज्ञानप्रमोद की
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