Book Title: Subodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar Author(s): Vinayvijay Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 3
________________ ॥ प्रस्तावना ॥ संसाररूप नाट्यालयनी अंदर प्रमाद, विकथा, दुर्ध्यान तथा ईर्ष्या यादि कारणोने लइने जीवो | अनादि कालथी नवा नवा वेष धारण करे बे ने तदनुरूप चेष्टा पण करे बे. यद्यपि कोइक वार शुभ कर्मोदयना प्रजावथी देव, गुरु, धर्मनी पूजा जक्ति तेमज आराधना करता देखाय वे, परंतु आंतरिक दोषो शांत नहीं थवाथी विचारा पुनः तेवा ने तेवा थइ संसारचक्रमां गोयां मारे ढें. जे जीवो एक वखत देव, गुरु, धर्मनी श्राराधना छाने स्तुति करता तेज जीवो देव, गुरु, धर्मनी निंदा करवा लागी जाय बे, नहीं करवानां कृत्यों करे बे, नहीं बोलवानुं बोले बेाने बेवढे प्रायः नास्तिक बनी जाय बे. या प्रताप पोतपोतानां कर्मनो बे, एटले तेमां श्राश्वर्य पामवा जेवुं नथी, अथवा तो अन्यनां कृत्यों पर ध्यान दइ थापणे अमूल्य समय नष्ट करवो जोश्तो नथी. कर्मना | नचाव्या दरेक जीवने नाचवुं पडे बे, माटे शुभ निमित्तोनो आश्रय लइ कर्म राजाने दराववा अने धर्म महाराजानो विजय करवा माटे हमेशां प्रयत्नशील रहेतुं जोइए. दरेक धर्मनी अंदर प्रायः केटलाक पर्वदिवसो मुकरर थयेला बे ते एटलाज माटे के ते दिवसोमां जव्य जीवो विशेषे करीने धर्मध्यान करी कर्म राजाने परास्त करे. कोइ पण धर्म एवो नहीं होय के जेमां अमुक दिवस पापना प्रायश्चित्त माटे मुकरर थयेल न होय. श्रावी रीते सर्वोत्तम, पवित्र जैन धर्मनी अंदर पण तेवा केटलाएक दिवस निर्णीत बे, जे पैकी पर्युषणा पर्वना दिवस घणाज मनोहर ने शुभ कार्य संपादक श्रात्मशुद्धिनुं असाधारण कारण वे. या | पर्वनी अंदर लोकप्रधान देवो पण तमाम प्रकारनां दिव्य सुखो बोमी दइने नंदीश्वर आदि द्वीपमां ज जगवाननी पूजा नक्ति आठ दिवस सुधी करे बे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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