Book Title: Subodh Jain Pathmala Part 02
Author(s): Parasmuni
Publisher: Sthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur

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Page 10
________________ इसके अतिरिक्त शिविर मे अधिक बालक उपस्थित हों, तो हम भी उस सम्पादित पाठ्य क्रम के आधार पर अध्यापकों द्वारा बालको को शिक्षण दे सके। यदि अन्यत्र कोई ऐसा शिविर लगाना चाहे, तो वहाँ भी उसका उपयोग हो सके। हमारो स्था० जन कॉन्फ्रेन्स ने जो पाठावलियाँ प्रकाशित की हैं, वह हमारे संघ से विचार और आचार द्वारा बहिष्कृत श्री सन्तबालजो द्वारा लिखवानो पड़ी है। यद्यपि उनका हमारे विद्वान मुनिराजो द्वारा सशोधन अवश्य हुआ है, पर मूल से विकृत पुस्तको का सशोधन सम्भव नहीं है। उनके लिए तो नये लेखन को आवश्यकता है। प्रत. उनके स्थान पर यदि कोई आप द्वारा उन नवलिखित पुतको को पढाना चाहें, तो भी पढा सके । उनके अत्यन्त आग्रह के कारण वर्तमान मे मेरो इस सम्बन्ध मे योग्यता, रुचि और समय की कमी होते हुए सुबोध जैन पाठमाला भाग १ के पश्चात् इस सुबोध जैन पाठमाला भाग २ को लिखा । फिर भी इनसे इच्छित उद्देश्य को पूर्ति हो सके, यह भावना रखते हुए तदनुकूल जितना मुझ से शक्य हो सका, उतना पुरुषार्थ किया। इस ग्रन्थ मे जो कुछ अच्छाइयाँ हैं वे सब देवगुरु और धर्म की कृपा का फल है, जिन्होंने क्रमश निग्रन्थ प्रवचन जैन धर्म प्रगट किया। मुझे धर्म का साहित्य और शिक्षण दिया और मेरो मति व बुद्धि कुछ निर्मल तथा विकसित को। प्रत्यक्ष मे विशेपतया श्री रतनलालजो डोसो. जिन्होंने इसका आद्योपान्त व्हिगावलोक्न कर इसमे सशोधन दिये तथा श्री सम्पतराजजी डोसो. जिन्हो ने मुख्यतः इसमे सुझाव दिये, वे इस ग्रथ को अच्छाइयो के भागो हैं-एतदर्थ में उनका कृतज्ञ हूँ। इसको जहाँ तक हो सका, जिन वचन के अनुकूल बनाने का उपयोग रखने का प्रयास किया है, तथापि इसमे जिन वचन के [ ख ।

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