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२. "] सुवोध जैन पाठमाला--भाग २ ४ प्रतिक्रमण, ५ कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान करना-ये छह बाते आवश्यक मानी गई हैं। .
, प्र० : सामायिक किसे कहते हैं ?
उ० : १ 'सम्यग्ज्ञान (तत्वज्ञान) सीखना, २ सम्यग्दर्शन (तत्वो पर श्रद्धा) रखना, ३. सम्यक्चारित्र स्वीकार करना (जिसमे या तो साधु-धर्म स्वीकार करना या श्रावक-धर्म (व्रत) स्वीकार करना या श्रावक धर्म के नववे व्रत मे एक मुहूर्त तक दो करण तीन योग से १८ पापो का त्याग करना) तथा ४. सम्यक्तप स्वीकार करन।।।
प्र० · हमने तो 'श्रावक के नववे व्रत को सामायिक कहते हैं ----यही सुना और सीखा है। आपने सामायिक के इतने अर्थ कैसे वताये ?
उ० . नाम की दृष्टि से श्रावक के नववे व्रत का नाम 'सामायिक' होने से वही सामायिक के रूप मे अति प्रसिद्ध है। पर गुण की दृष्टि से सम्यग्ज्ञान आदि सबसे समभाव की आय होती है, अत. ये सभी सामायिक ही समझने चाहिएँ।
.: सामायिक अर्थान् सम्यग्ज्ञान दर्शन, चरित्र और तप आवश्यक क्यो हैं ?
२०: जैसे वन से नगर मे पहुँचने वाले को १.- मार्ग ग्राटिका सम्यग्ज्ञान आवश्यक है, २. मार्ग आदि के ज्ञान पर पूर्ण श्रद्धा होना आवश्यक है, ३. वन मे भटकना छोडना
आवश्यक है और ४ मार्ग पर चलना प्रावश्यक है, वैसे ही हम संसार-वन मे परिभ्रमण कर रहे हैं। यदि हम मोक्ष-नगर मे पहुँचना चाहते हैं, तो हमे १. मोक्ष के मार्ग प्रादि-रूप नव तत्वो का
पूर्ण का सम्यग्ज्ञान आवष्यकार में पहुंचने वाले