Book Title: Subodh Jain Pathmala Part 01
Author(s): Parasmuni
Publisher: Sthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur

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Page 5
________________ प्रस्तावना तपस्वी १००८ श्री लालचन्द्रजी म. सा. की तपाराधना और संयम-साधना से स्था० जैन समाज परिचित है। इन मुनिराज की शान्त मुख-मुद्रा, अन्तरोन्मुख चेतना दर्शनीय और चन्दनीय है। आपके चिन्तन व अनुमव से युक्त उद्गार संग्रहणीय हैं। आपके प्राज्ञानुवर्ती तरुण तपस्वी श्री मानमुनिजी म० सा० की सरलता उनके मुख पर मुस्कराहट के रूप मे प्रकट होती रहती है। मधुर प्रवचनकार श्री कानमुनिजी म. सा०, मनोहर भाव-भगिमा व मनोवैज्ञानिक ढंग से व्याख्यान की ऐसी छटा उपस्थित करते हैं कि, श्रोतागरण मंत्र मुग्ध हो जाते हैं। पं० पारसमुनिजी म. सा० का अध्ययन, शास्त्रीय ज्ञान, तर्क-बुद्धि और कवित्व से श्रद्धाशील श्रावक-समाज परिचित है। २५ वर्ष की अल्पायु मे ही आपको ऐसी स्थिति देखकर प्रानन्द और आश्चर्य होता है। सचमुच १००८ श्री लालचन्द्रजी म. सा. के प्राज्ञानुवर्ती मुनिमंडली को आजीवन ब्रह्मचर्य-साधना व सयम-आराधना श्रद्धावनत करने वाली है। इन मुनियों का जीवन वैभव से उतर कर संयम में क्रीडा करता हुआ आत्म-साधना मे सलग्न है। _ 'सुबोध जैन पाठमाला' का अभिनन्दन करते हुए इसलिए आनन्द का अनुभव हो रहा है कि इसका संयोजन और लेखन पं. पारसमुनिजी म. सा० की विचक्षण दृष्टि प्रोर कुशल कर-कमलों द्वारा हमा।

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