Book Title: Subhashit Sanchay Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ अज्ञातकर्तृक सुभाषितसञ्चय : भूमिका सं. विजयशीलचन्द्रसूरि सम्भवतः १६मा शतकनी लखायेली, १० पत्रनी एक हस्तप्रति उपरथी तैयार करवामां आवेल आ सुभाषित - सञ्चयना रचयिता के संकलनकर्ता अज्ञात छे. जुदा जुदा २० पदार्थोंने विषय बनावीने, ते प्रत्येक विषय पर रचायेला अष्टकोनो आ सरस सञ्चय छे. आ सञ्चयना अन्तिम अष्टक (आत्म) निन्दाष्टकनो सीधो सम्बन्ध जैन साधुना जीवन साथे होवाथी, तेमज १८मा अष्टकना पांचमा श्लोकनो विषय 'जिनपति' ओटले के जैन तीर्थंकर होवाथी, आ सञ्चयना प्रणेता कोई जैन मुनि छे, ए वात स्वयं स्पष्ट थई जाय छे. अलबत्त, मोटा भागना श्लोको तो विविध कविओनी रचना - स्वरूप ज जणाय छे, छतां आमां संकलनकारे रचेलां पद्यो पण समाविष्ट होवानी सम्भावना नकारी तो न ज शकाय. खास करीने 'निन्दाष्टक' ए संकलनकारनी रचना होवानुं मानी शकाय . आ सञ्चयनी विशेषता ए छे के दरेक अष्टकमां आवनारा श्लोकोना प्रथम पदोनो क्रमिक समन्वय करीने ते ते अष्टकनो प्रथम श्लोक रचवामां आव्यो छे. अर्थात् प्रथम श्लोकमां ज पछीना बधा श्लोकोना प्रतीक - पदोनुं संयोजन रचीने ते अष्टकमां समाविष्ट श्लोकोनो निर्देश करी देवायो छे, अने साथे साथे ते ते अष्टकनुं नाम पण गुंथी लेवायुं छे. प्रथम दृष्टिए अष्टकनी संख्या २०नी छे, छतां खरेखर १९ अष्टको ज छे. १०मा क्रमांकना अष्टकमां मात्र प्रतीक - श्लोक ज छे, अन्य श्लोको नथी; वस्तुतः ते ज प्रतीक - श्लोक, आगळ जतां १९मा अष्टकना प्रारम्भे पुनः जोवा मळे छे. ए रीते विधिअष्टक के भग्नाशविधि- अष्टक ए बन्ने एक ज छे, जुदा नहि. आथी कुल १९ अष्टको ज होवानुं सिद्ध थाय छे. अष्टकोनां नामो क्रमशः आ प्रमाणे छे : हंसाष्टक, चकर वाक), भ्रमर, करभ, हरिण, सिंह, धवल, सज्जन, वानरवल्लभ, भग्नाशविधि, मेघ, समुद्र, सत्पुरुष, गज, वृक्ष, बप्पीह, रत्न, देव, विधि, निन्दाष्टक. आ अष्टकोमां गुंथायेला श्लोको मुख्यत्वे अन्योक्तिरूप छे के पछी सुभाषितरूप छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 ... 28