Book Title: Streemukti Anyatairthikmukti evam Savastramukti ka Prashna
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_3_001686.pdf

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Page 1
________________ स्त्रीमुक्ति, अन्यतैर्थिकमुक्ति एवं सवस्त्रमुक्ति का प्रश्न यापनीय परम्परा के विशिष्ट सिद्धान्तों में स्त्रीमुक्ति, सग्रन्थमुक्ति ( गृहस्थमुक्ति ) और अन्यतैर्थिकमुक्ति ऐसी अवधारणाएँ हैं, जो उसे दिगम्बर परम्परा से पृथक् करती हैं। एक ओर यापनीय संघ अचेलकत्व ( दिगम्बरत्व ) का समर्थक है, तो दूसरी ओर वह स्त्रीमुक्ति, सग्रन्थ ( गृहस्थ ) मुक्ति, अन्यतैर्थिक ( अन्यलिंग ) मुक्ति आदि का भी समर्थक है। यही बात उसे श्वेताम्बर आगमिक परम्परा के समीप खड़ा कर देती है। यद्यपि स्त्रीमुक्ति की अवधारणा तो श्वेताम्बर परम्परा के प्राचीन आगम साहित्य उत्तराध्ययन, ज्ञाताधर्मकथा आदि में भी उपस्थित रही है, फिर भी तार्किक रूप से इसका समर्थन सर्वप्रथम यापनीयों ने ही किया। ऐसा प्रतीत होता है कि स्खीमुक्ति निषेध के स्वर सर्वप्रथम पाँचवींछठी शती में दक्षिण भारत में ही मुखर हुए और चूँकि यहाँ आगमिक परम्परा को मान्य करने वाला यापनीय संघ उपस्थित था, अत: उसे ही उसका प्रत्युत्तर देना पड़ा। श्वेताम्बरों को स्त्रीमुक्ति सम्बन्धी विवाद की जानकारी यापनीयों से प्राप्त हुई। श्वेताम्बर आचार्य हरिभद्र ( आठवीं शती ) ने सर्वप्रथम इस चर्चा को अपने ग्रन्थ ललितविस्तरा में यापनीय तन्त्र के उल्लेख के साथ उठाया है। इसके पूर्व, भाष्य और चूर्णि साहित्य में यह चर्चा अनुपलब्ध है। इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम तो हमें यह देखना होगा कि इस तार्किक चर्चा के पहले स्त्रीमुक्ति के समर्थक और निषेधक-निर्देश किन ग्रन्थों में मिलते हैं। सर्वप्रथम हमें उत्तराध्ययनसूत्र के अन्तिम अध्ययन (ई० पू० द्वितीय-प्रथम शती ) में स्त्री की तद्भव मुक्ति का स्पष्ट उल्लेख प्राप्त होता है। ज्ञातव्य है कि श्वेताम्बर परम्परा के अतिरिक्त यापनीय परम्परा में भी उत्तराध्ययन की मान्यता थी और उसके अध्ययन-अध्यापन की परम्परा उसमें लगभग नवीं शती तक जीवित रही है, क्योंकि अपराजित ने अपनी भगवती आराधना की टीका में उत्तराध्ययन से अनेक गाथाएँ उद्धृत की हैं, जो क्वचित् पाठभेद के साथ वर्तमान उत्तराध्ययन में भी उपलब्ध हैं। समवायांग, नन्दीसूत्र आदि श्वेताम्बर मान्य आगमों में अंगबाह्य आगम के रूप में, तत्त्वार्थभाष्य के साथ-साथ तत्त्वार्थसूत्र की दिगम्बर टीकाओं में एवं षटखण्डागम की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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