Book Title: Streemukti Anyatairthikmukti evam Savastramukti ka Prashna
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_3_001686.pdf

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Page 9
________________ स्त्रीमुक्ति, अन्यतैर्थिकमुक्ति एवं सवस्त्रमुक्ति का प्रश्न सम्पदा से युक्त होने के कारण पुरुष के समान ही स्त्री का भी निर्वाण सम्भव है। यदि यह कहा जाय कि स्त्रीत्व, रत्नत्रय की उपलब्धि में वैसे ही बाधक है, जैसे देवत्व आदि तो यह तुम्हारा अपना कथन हो सकता है। आगम में और अन्य ग्रन्थों में इसका कोई प्रमाण नहीं है। एक साध्वी जिन वचनों को समझती है, उन पर श्रद्धा रखती है और उनका निर्दोष रूप से पालन करती है। इसलिये रत्नत्रय की साधना का स्त्रीत्व से कोई भी विरोध नहीं है। यह भी नहीं कहा जा सकता कि रत्नत्रय की साधना स्त्रीत्व के लिये अशक्य है और जो अदृष्ट है उसके साथ असंगति बताने का कोई अर्थ नहीं है। यदि यह कहा जाय कि स्त्री में सातवें नरक में जाने की योग्यता का अभाव है, इसलिये वह निर्वाण-प्राप्ति के योग्य नहीं है। किन्तु ऐसा अविनाभाव या व्यक्ति सम्बन्ध द्वारा सिद्ध नहीं किया जा सकता, क्योंकि जो सातवें नरक में नहीं जा सकता वह निर्वाण को प्राप्त नहीं कर सकता। चरम शरीरी जीव तद्भव में भी सातवें नरक में नहीं जा सकते, किन्तु तद्भव मोक्ष जाते हैं। पुन: ऐसा कोई नियम नहीं है कि जो जितना निम्न गति में जा सकता है, उतना ही उच्च गति में जा सकता है। कुछ प्राणी ऐसे हैं जो निम्न गति में बहुत निम्न स्थिति तक नहीं जाते, किन्तु वे सभी उच्च गति में भी समान रूप से जाते हैं, जैसे सम्मूछिम जीव प्रथम नरक से आगे नहीं जा सकते, परिसर्प आदि द्वितीय नरक से आगे नहीं जा सकते, पक्षी तृतीय नरक से आगे नहीं जा सकते, चतुष्पद चतुर्थ नरक से आगे नहीं जा सकते, सर्प पंचम नरक से आगे नहीं जा सकते। इस प्रकार निम्न गति में जाने से इन सबमें भिन्नता है, किन्तु उच्चगति में ये सभी सहस्रार स्वर्ग तक बिना किसी भेदभाव के जा सकते हैं। इसलिये यह कहना कि जो जितनी निम्न गति तक जाने में सक्षम होता है, वह उतनी ही उच्च गति तक जाने में सक्षम होता है, तर्कसंगत नहीं है। अधोगति में जाने की अयोग्यता से उच्च गति में जाने की अयोग्यता सिद्ध नहीं होती। यदि यह कहा जाय कि वाद आदि की लब्धि से रहित, दृष्टिवाद के अध्ययन से वंचित, जिनकल्प को धारण करने में असमर्थ और मन:पर्यय ज्ञान को प्राप्त न कर पाने के कारण स्त्री की मुक्ति नहीं हो सकती, तो फिर यह मानना होगा कि जिस प्रकार आगम में जम्बूस्वामी के पश्चात् इन जिन बातों के विच्छेद का उल्लेख किया है, उसी प्रकार स्त्री के लिये मोक्ष के विच्छेद का भी उल्लेख होना चाहिये था। यदि यह माना जाय कि स्वी दीक्षा की अधिकारी न होने के कारण मोक्ष की अधिकारिणी नहीं है, तो फिर आगमों में दीक्षा के अयोग्य व्यक्तियों की सूची में जिस प्रकार शिशु को दूध पिलाने वाली स्त्री तथा गर्भिणी स्त्री आदि का उल्लेख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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