Book Title: Stambhana Parshwanath Dwantrishad Prabandhoddhara
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 1
________________ श्री स्तम्भनपार्श्वनाथ-द्वात्रिंशत्प्रबन्धोद्धारः ।। -सं. विजयशीलचन्द्रसूरि नागेन्द्रगच्छीय श्रीमेरुतुंगसूरिकृत "स्तम्भनाधीश प्रबन्धाः"नी एकमात्र उपलब्ध प्रति-आधारित वाचना आ अंकमां आपी छे. आ प्रबन्धोनो संक्षेप करीने थयेल "उद्धार"नी बे प्रति प्राप्त थई छे, जे पाछळ्थी कोईक अज्ञात अभ्यासीए कों होवानुं समजाय छे. "उद्धार"नी प्राप्त बे प्रतिओमां प्रथम ६ पत्रोनी, प्रमाणमां घणी शुद्ध अने अनुमानत: पंदरमा शतकना अंतमां के सोळमा शतकना आरंभमां लखाएली जणाई छे. आ प्रतिनी झेरोक्स नकलमां भंडारनुं नाम उल्लिखित नथी, तेथी कया गामना कया भंडारनी छे, ते ख्याल नथी आव्यो. घणा भागे ते छाणीना के वडोदराना भंडारनी प्रति होवानो अंदाज छे. बीजी प्रति, ८ पत्रोनी, अशुद्ध अने प्रथम प्रतिनी नकलस्वरूप जणाय छे. ते लींबडीना ज्ञानभंडारनी छे. मूळ प्रबन्धो तथा तेनो आ संक्षेप - ए बनेने सरखावी जोवाथी इतिहास रसिकोने कांईक ने कांईक नवं प्राप्त थशे तो आ प्रयत्न लेखे लागशे. मूळ प्रबन्धोमां क्यांक अंशो त्रूटक छे, ते प्रबन्धो, अलबत्त साव संक्षेपमां पण अहीं पूर्णाशे मळे छे, ते पण महत्त्वपूर्ण छे. जेम के प्रबन्ध ५ तथा १८माना प्रारंभ तेमज प्रबन्ध ८. तथा १३ना अंतभाग मूल प्रबन्धोमां त्रुटित छे, तो आ संक्षेपमा भले संक्षेपस्वरूपे ज, पण, ते अंशोनुं अनुसन्धान मळे छे. बन्ने कृतिओ एक साथे होवाथी तुलनात्मक तथा भाषाकीय आदि दृष्टिए अभ्यास करवानुं सुगम बनशे तेवी आशा छे. श्रीस्तम्भनपार्श्वनाथ-द्वात्रिंशत्प्रबन्धोद्धारः ।। श्रीस्तम्भनपार्श्वस्य मूर्तिः । शक्रेण कारिता । दत्तनाम्ना जिनेन सौधर्मेन्द्राग्रे ३२ तत्प्रबन्धाः उक्तास्ते मेरुतुङ्गसूरिणा सङ्ग्रहीताः । शङ्खिनीमतात् । दूसमदण्डिकातः । भैरवी चरितात् । कल्परत्नसारात् । बिन्दुसारचूलात् । सोमप्राभृतकर्णिकात् । देवप्रभावपटलाच्च । श्रीसद्गुरुमुखात् । बहुश्रुतादेशाच्च ते चामी । श्रीभरतचक्रिण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 ... 15