Book Title: Sramana 2003 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 5
________________ सम्पादकीय श्रमण जुलाई-सितम्बर २००३ का अंक सम्माननीय पाठकों के समक्ष उपस्थित है। अपरिहार्य कारणों से हम इसे समय से प्रस्तुत न कर सके, इसके लिये हम क्षमाप्रार्थी हैं। श्रमण का अक्टूबर-दिसम्बर अंक भी कम्पोज हो रहा है और हमारा पूर्ण प्रयास है कि उक्त अंक भी सुधी पाठकों को अतिशीघ्र प्रस्तुत हो सके। इस अंक में भी जैन इतिहास, दर्शन, साहित्य एवं कलापक्ष से सम्बद्ध ११ मौलिक आलेख प्रकाशित हैं। हमारा यही प्रयास रहता है कि उक्त विषयों के आलेखों को हम सुसम्पादित कर उन्हें शुद्धरूप में प्रकाशित करें। अपने इस प्रयास में हम कहां तक सफल हो सके हैं यह निर्णय सुधी पाठकगण स्वयं करें और अपनी निष्पक्ष प्रतिक्रिया से हमें अवश्य सूचित करने की कृपा करें। हम अपने ऐसे पाठकों के विशेष अनुगृहीत होंगे जो हमारी त्रुटिओं से हमें नि:संकोच अवगत कराने का कष्ट करेंगे। जैन धर्म-दर्शन-साहित्य-इतिहास एवं कला से सम्बद्ध मौलिक एवं अप्रकाशित आलेख हिन्दी, अंग्रेजी एवं गुजराती भाषाओं में प्रकाशनार्थ आमंत्रित हैं। १६-१२-२००३ सम्पादक

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