Book Title: Soya Man Jag Jaye Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 7
________________ 165 173 182 191 199 206 चरैवेति चरैवेति २३. चैतन्य-विकास के सोपान २४. आत्म-तुला की चेतना का विकास २५. ज्ञाता-द्रष्टा चेतना का विकास २६. समता की चेतना का विकास २७. अनावृत चेतना का विकास २८. सूक्षम शरीर और पुनर्जन्म २९. प्राण और पर्याप्ति विवेक ३०. क्या धार्मिक होना जरूरी है? ३१. क्या ध्यान जरूरी है? ३२. क्या आत्म-नियन्त्रण जरूरी है? ३३. क्या कष्ट सहना जरूरी है? ३४. क्या जीवन-शैली को बदलना जरूरी है? 211 219 226 231 237 242 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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