Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti

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Page 5
________________ श्रीभवलय- परिचय श्रीकुमुदेन्दु श्राचार्य और उनका समय श्रीकुमुदेन्दु या कुमुदचन्द्र (इन्दु शब्द का अर्थ 'चन्द्र' है) नाम के अनेक आचार्य हुए हैं । एक कुमुदुचन्द्र आचार्य कल्याणमन्दिर स्तोत्र के कर्ता हैं । एक कुमुदचन्द्र प्राचार्य महान वादो वाग्मी विद्वान हुए हैं जिन्होंने श्वेताम्बरों के साथ शास्त्रार्थं किया था। एक कुमुदेन्दु सन् १२७५ में हुए हैं जो श्री माघनन्दि सिद्धांत चक्रेश्वर के शिष्य थे उन्होंने रामायण ग्रंथ लिखा है। किन्तु इस ग्रन्थ राज भूवलय के कक्ष श्री कुमुदेन्दु आचार्य इन सबसे भिन्न प्रतीत होते हैं। श्री देवप्पा का पिरिया पट्टन में लिखा हुआ कुमुदेन्दु शतक नामक कानड़ा पद्यमय पुस्तक है उसमें भूवलय के कर्ता श्री कुमुदेन्दु बाचार्य का उल्लेख है। देवप्पा ने कवि माला तथा काव्यमाला का विचार करते हुए संगीत मय कविता लिखी है, उसमें भूवलय कर्ता कुमुदेन्दु प्राचार्य का आलंकारिक वर्णन है । कुमुदेन्दु शतक के कुछ कानड़ी पत्र यहाँ बतौर उदाहरण के दिये जाते हैंकुमुदेन्दु श्राचार्य ने अपने माता पिता का नामका उल्लेख तो नहीं किया परन्तु मूर्ति होने के बाद इस भूवलय नामक विश्व काव्य की रचना करते समय अपना कुछ परिचय दिया, वह निम्न पद्यों से प्रकट है : श्रोविसिनु कर्माटकद जनरिगे । श्री दिव्यवाय क्रमदे || श्रीवया धर्म समन्वय गणितद। मोदद कयेयनालिपु ॥ वरद मंगलद प्राभूतन महाकाव्य । सरणियोळ्गुरुवीरसेन || गुरुगळमतिज्ञान वरिवसिलेकिह । प्ररहंत केवलज्ञान । जनिसलु सिरिवोरनेर शितपन धनवाद काव्यदकयेय ॥ जिनसेन गुरुगल तनुविनजन्मद घनपुण्यवरधर्म नवस्त ॥ नाना जनपद वेल्लदरोळुधर्म । तानु क्षीपिसि बप ॥ तानल्लि मान्यखेटददोरे जिन भक्त तानुप्रमोघ वर्षांक । afa कर्नाटक जनता को सम्बोधन करते हुए कहते हैं : श्रर्थं—श्री कुमुदेन्दु आचार्य का ध्येय विशालकीति है, मुनिचर्याका पालन करना उनका गौरव (गुरुत्व) है, वे नवीन नवीन कोति उत्पन्न करते थे, वे अवतारी महान पुरुष थे। सेनगा की कीर्ति फैलाने वाले थे । उनका गोत्र सद्धर्म है सूत्र वृषभ हैं, शाखा द्रव्यांग है, वंश इक्ष्वाकु है, सर्वस्वत्यागी सेन हैं। नवीन गरण गच्छ के भ्रानन्ददायक नेता थे । नव्य भारत में शुद्ध रुचिकार कर्माट राजा को उन्होंने भारत के निर्माण में अहिंसा धर्म की परिपाटी को बढ़ाने रूप आशीवाद दिया । समस्त भाषाओं और समस्त मतों का समन्वय और एकीकरण करने वाले भुवन विख्यात भूवलय ग्रन्थ की रचना को । इस तरह देवप्पा ने भूवलय के कर्ता श्री कुमुदेन्दु (कुमुदचन्दु) आचार्य का परिचय दिया है । भूवलय ग्रन्थ से प्रतीत होता है कि कर्नाटक चक्रवर्ती मान्यखेट के राजा राष्ट्रकूट प्रमोघवर्ष को भूवलय द्वारा कुमुदेन्दु श्राचार्य ने व्याख्या के साथ करणसूत्र समझाया था। श्री कुमुदेन्दु प्राचार्य के दिये हुए विवरण को परशीलन करके देखा जाय तो वे सेनगरण, शातवंश, सद्धमं गोत्र, श्री वृषभ सूत्र, द्रव्यानुयोग शाखा, और इक्ष्वांकु वंश परम्परा में उत्पन्न हुए तथा सेनगरण में से प्रगट हुए नव गरम-गच्छों की व्यवस्था की। श्री कुमुदेन्दु को सबंश देव को सम्पूर्ण वाणी अवगत थी अतः वे महान ज्ञानी, धुरन्धर पंडित थे लोग इन्हें सर्वज्ञ तुल्य समझते थे और इनके पहले के मंगल प्राभृत भूवलय को गरिणत पद्धति के अनुसार जानने वाला श्री वीरसेनाचार्यं को बतलाया है। तथा श्री जिनसेन आचार्य का "शरोर जन्म से उत्पन्न हुआ घनपुण्यवर्द्धन वस्तु" विशेषरण द्वारा स्मरण करके वीरसेन के बाद श्री जिनसेन, आचार्य को गौरव प्रदान किया है ।

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